G20 Economy: अगर हटा दें ये 20 देश तो कंगाल हो जाएगी दुनिया, अगले सप्ताह जिनका भारत में होने वाला है जुटान
G20 GDP Contribution: अगले सप्ताह जी20 का शिखर सम्मेलन नई दिल्ली में होने जा रहा है, जिसकी तैयारियां महीनों से चल रही है. आइए जानते हैं कि जी20 क्या है और इसका क्या आर्थिक महत्व है...
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अगले सप्ताह नई दिल्ली में जी20 का शिखर सम्मेलन होने जा रहा है. इस आयोजन की अहमियत इस बात से लगा सकते हैं कि इसके लिए महीनों से तैयारियां चल रही हैं और अभी तो पूरी दिल्ली को छावनी बना दिया गया है. इस सम्मेलन के आयोजन के लिए प्रगति मैदान की पूरी शक्ल-सूरत बदल दी गई है और तैयारियों में हजारों करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं. आइए जानते हैं कि आखिर ये जी20 क्या है, इसका महत्व क्या है और अर्थव्यवस्था के लिहाज से यह किस कदर महत्वपूर्ण है...
अभी पीएम मोदी हैं चेयरमैन
सबसे पहले जी20 के बारे में मोटा-मोटी जान लेते हैं. जी20 यानी ग्रुप ऑफ ट्वेंटी. जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि ये 20 निकायों का समूह है. इसमें 19 देश और यूरोपीय यूनियन शामिल हैं. इसे जी7 यानी ग्रुप ऑफ सेवन के सदस्य देशों ने साल 1999 में बनाया था. अभी जी20 की अध्यक्षता भारत के पास है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसके चेयरमैन हैं. यही कारण है कि इस बार जी20 का शिखर सम्मेलन भारत में हो रहा है. यह जी20 का 18वां शिखर सम्मेलन है और पहली बार इसका आयोजन भारत में हो रहा है.
दुनिया की अर्थशक्ति का प्रतिनिधि
जी20 की सबसे अहम प्रासंगिकता आर्थिक लिहाज से ही है. इसे बनाने का मुख्य उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से जुड़े सभी प्रमुख मुद्दों का आपसी सहमति से समाधान निकालना है. सरल शब्दों में कहें तो अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग की सबसे बड़ी वैश्विक संस्था का नाम है जी20. दुनिया की 20 सबसे बड़ी आर्थिक शक्तियां इसकी सदस्य हैं.
इन आंकड़ों से लगा लीजिए अंदाजा
जी20 की आर्थिक हैसियत का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि अगर इसके बीसों सदस्यों को हटा दिया जाए तो धरती कंगाल हो सकती है. दरअसल जी20 के सदस्य पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था यानी जीडीपी में करीब 85 फीसदी का योगदान देते हैं. वहीं कुल वैश्विक व्यापार में जी20 देशों का योगदान 75 फीसदी से ज्यादा है. दुनिया की करीब दो-तिहाई आबादी भी इन्हीं 20 आर्थिक क्षेत्रों में निवास करती है.
आर्थिक संकटों से हुई शुरुआत
जी20 को बनाने की जरूरत भी दुनिया को आर्थिक संकटों के कारण ही महसूस हुई थी. दरअसल 1990 का दशक पूरी दुनिया के लिए आर्थिक लिहाज से चुनौतीपूर्ण रहा था. मैक्सिको के पेसो क्राइसिस से शुरू हुआ संकट लगातार पसरता चला गया और एक के बाद एक कर कई उभरती अर्थव्यवस्थाएं संकट की चपेट में गिरती चली गईं. 1997 में एशिया ने फाइनेंशियल क्राइसिस का सामना किया, उसके अगले साल 1998 में रूस में फाइनेंशियल क्राइसिस छा गया. इन्हीं संकटों को ध्यान में रखते हुए जी20 की शुरुआत की गई.
इस तरह से होता है आयोजन
जी20 के सदस्य देशों में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, दक्षिण कोरिया, जापान, मैक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, तुर्की, ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ शामिल हैं. इनके अलावा कुछ इनवाइटी मेंबर भी होते हैं. शिखर सम्मेलन में सभी सदस्य व इन्वाइटी देशों के शीर्ष नेता मिलते हैं और मिलकर तत्कालीन वैश्विक आर्थिक मुद्दों का हल निकालते हैं. शिखर सम्मेलन से पहले सभी सदस्य देशों के वित्त मंत्रियों और सेंट्रल बैंक के गवर्नरों का भी सम्मेलन आयोजित किया जाता है.
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