रिवर्स माइग्रेशन का असर उद्योगों पर गहराता जा रहा है. प्रवासी मजदूरों के बड़ी तादाद में घर लौटने से मैन्यूफैक्चरिंग और कंस्ट्रक्शन सेक्टर में कामगारों की भारी कमी हो गई है. रियल एस्टेट सेक्टर भी मजदूरों की कमी से जूझ रहा है. हेल्थकेयर और फार्मास्यूटिकल्स सेक्टर भी कर्मचारियों की कमी देखने को मिल रही है.


मैन्यूफैक्चरिंग और रियल एस्टेट सेक्टर पर प्रवासी मजदूरों के घर लौटने का सबसे ज्यादा असर पड़ा है. लॉकडाउन के बाद कंपनियों की ओर से काम शुरू करने की वजह से कर्मचारियों की जरूरत अचानक बढ़ गई है. लेकिन पर्याप्त संख्या में मजदूर नहीं मिल रहे हैं. लिहाजा उन्हें बढ़े वेतन और इन्सेंटिव देकर रखा जा रहा है. इंडस्ट्री सूत्रों के मुताबिक मैन्यूफैक्चरिंग और रियल एस्टेट सेक्टर में कम से कम 40 से 50 फीसदी कामगारों की कमी महसूस की जा रही है.


दक्षिण के राज्यों में ज्यादा असर


दक्षिण के कई राज्यों में यह असर ज्यादा दिख रहा है. तमिलनाडु में हल्के इंजीनयरिंग उद्योग से जुड़ी लगभग 600 इकाइयों की मांग में लॉकडाउन के दौरान भारी कमी दर्ज की गई थी. लेकिन अब जबकि मांग में बढ़ोतरी के आसार दिख रहे हैं तो कामगार नदारद हैं. यहां की फाउंड्री में बड़ी तादाद में कामगार काम करते हैं. हर फाउंड्री में औसतन 200 से 300 लोग काम करते हैं. कुल मिलाकर इनमें डेढ़ से दो लाख लोग काम करते हैं. इनमें से 60 फीसदी प्रवासी मजदूर हैं.


ज्यादा मजदूरी और इन्सेंटिव का ऑफर


तिरुपुर की टेक्सटाइल इंडस्ट्री का भी यही हाल है. टेक्सटाइल इंडस्ट्रीज ने अपना काम तेजी से शुरू कर दिया है लेकिन टेलर, फिनिंशिंग और दूसरे कामगारों की कमी बनी हुई है. कई कंपनियों ने उन राज्यों के मुख्यमंत्रियों को मदद के लिए चिट्ठी लिखी है, जहां से प्रवासी मजदूर काम करने आते हैं. इन कर्मचारियों को ज्यादा मजदूरी और इन्सेंटिव का ऑफर दिया जा रहा है. कंपनियों ने कहा है कि वे कामगारों की बेहतर देखभाल करने की कोशिश करेंगीं.