नोटबंदी से अर्थव्यवस्था में सकारात्मक बदलाव संभव: विश्व बैंक
नई दिल्ली: विश्व बैंक ने कहा है कि नोटबंदी अर्थव्यवस्था में सकारात्मक बदलाव लाने की क्षमता ऱखता है. हालांकि नोटबंदी की वजह से 31 मार्च को खत्म हुए कारोबारी साल 2016-17 के दौरान आर्थिक विकास दर मामूली गिरावट के बाद 6.8 फीसदी रह सकती है.
बैंक की ओर से जारी होने वाले इंडियन डेवलपमेंट अपडेट के मई संस्करण में कहा गया है कि बीते कारोबारी साल की शुरुआत में आर्थिक विकास की रफ्तार धीमी पड़ रही थी, लेकिन अनुकूल मानसून से हालात बेहतर हुए. फिर भी नोटबंदी की वजह से सुधार की रफ्तार पर थोड़े समय के लिए असर पड़ा. एक साथ 86 फीसदी मुद्रा चलन के बाहर होने से बीते कारोबारी साल की तीसरी तिमाही (अक्टूबर-दिसम्बर) के दौरान विकास दर घटकर सात फीसदी पर आ गयी जबकि पहली तिमाही में ये 7.3 फीसदी थी. इसी को ध्यान मे रखते हुए विश्व बैंक का अनुमान है कि 2016-17 के दौरान विकास दर 6.8 फीसदी रह सकती है जो 2017-18 में बढ़कर 7.2 फीसदी और 2019-20 मे 7.7 फीसदी पर आ सकती है.
नोटबंदी का असर
बैंक की माने तो सीमित आंक़ड़ों के आधार पर कहा जा सकता है निर्माण और अनौपचारिक खुदरा कारोबार में काम करने वाले गरीब परिवारों पर कुछ असर पड़ा. महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना यानी मनरेगा के तहत बीते कारोबारी साल के पहले 11 महीनों में कुल रोजगार 2015-16 से कहीं ज्यादा हो गया. ग्रामीण इलाको में खपत घटी. बहरहाल, विश्व बैंक को लगता है कि ज्यादा आंकड़े उपलब्ध होंगे, तभी नीतियों के सामाजिक मायनों को भविष्य में समझने में आसानी होगी.
फिर भी बैंक कहता है कि आर्थिक विकास पर मामूली असर ही पड़ा. डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा देने, ग्रामीण इलाकों में आमदनी बढ़ने और सार्वजनिक खपत में तेजी इसकी वजह रही. नवम्बर औऱ दिसम्बर के महीने में ग्रामीण इलाको में मजदूरी बढ़ने और मानसून की वजह से बेहतर फसल ने नोटबंदी से पैदा होने वाली किसी भी आशंका को मंदा कर दिया.
बैंक की राय में नोटबंदी की वजह से लंबे समय में अर्थव्य़वस्था के बड़े हिस्से के संगठित स्वरुप मे बदलने की रफ्तार तेज होगी. ऐसा हुआ तो कर से कमाई बढ़ेगी. डिजिटल माध्यमों का ज्यादा इस्तेमाल होने से ज्यादा से ज्यादा लोग कर के दायरे में आएंगे. दूसरी ओर पूरे देश को एक बाजार बनाने वाली कर व्यवस्था वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी से भी अनौपाचरिक क्षेत्र के औपचारिक में तब्दील होने को बढ़ावा मिलेगा.
जीएसटी रिपोर्ट ने इस बात का संत्रान लिया है कि गरीबों पर बोझ लादे बगैर जीएसटी लागू करना संभव हो सकेगा. नयी कर व्यवस्था से समानता बढ़ेगी और गरीबी कम होगी. रिपोर्ट में कहा गया है कि जीएसटी के साथ दिवालियेपन से निबटने के लिए नए कानून और बैंकों के फंसे कर्ज से निपटने की मजबूत रणनीति पर समयबद्ध और सही तरीके से अमल होना तेज आर्थिक विकास के लिए बेहद जरुरी है.
विश्व बैंक के कंट्री डायरेक्टर जुनैद अहमद कहते हैं, “भारत तेजी से बढ़ने वाला अर्थव्यवस्था बना हुआ है और जीएसटी लागू होने से इसे और बल मिलेगा. जीएसटी से एक ओर जहां कारोबार करने की लागत घटेगी, सामान एक जगह से दूसरे जगह पहुंचाने की लागत घटेगी, वहीं समानता में कोई कमी नहीं होगी.”