भारत अभी आर्थिक मोर्चे पर खूब झंडे गाड़ रहा है. एक तरफ देश लगातार दुनिया की सबसे तेज वृद्धि करने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बना हुआ है, तो दूसरी ओर गूगल से लेकर ऐपल जैसी कई दिग्गज कंपनियों की अगुवाई भारतीय मूल के लोग कर रहे हैं. हालांकि इसके साथ-साथ कुछ चिंताजनक बातें भी उभर रही हैं. भारत के सामने अभी सबसे बड़ी समस्या है तेजी से वर्कफोर्स में शामिल हो रही युवा आबादी को रोजगार मुहैया कराने की... और इस राह में सबसे बड़ा रोड़ा बन रही हैं युवाओं की डिग्रियां.
हर साल बढ़ रहा वर्कफोर्स
ब्लूमबर्ग की एक ताजी रिपोर्ट में भारतीय युवाओं की डिग्रियों को लेकर गंभीर चिंताएं व्यक्त की गई हैं. रिपोर्ट में कई कंपनियों के अनुभवों के आधार पर कहा गया है कि अभी सबसे बड़ी समस्या योग्य लोगों की है. रोजगार के मौके हैं, कंपनियों को जरूरत है, कंपनियां लोगों को खोज रही हैं, लेकिन उन्हें उचित योग्यता वाले लोग नहीं मिल पा रहे हैं. यह हाल तब है, जब हर साल लाखों लोग ग्रेजुएट होकर कॉलेज से निकल रहे हैं और वर्कफोर्स का हिस्सा बन रहे हैं.
भारतीय शिक्षा की ये खाई जिम्मेदार
रिपोर्ट के अनुसार, नौकरी पाने की लालसा में कई युवा दो या तीन डिग्रियां ले रहे हैं, लेकिन इसके बाद भी उन्हें रोजगार नहीं मिल पा रहा है. दरअसल इसके लिए भारतीय शिक्षा व्यवस्था की वह खाई जिम्मेदार है, जो एक तरफ सुंदर पिचाई और सत्या नडेला जैसे लोग पैदा कर रही है, तो दूसरी ओर थोक में ऐसे ग्रेजुएट तैयार कर रही है, जिनके पास काम करने लायक कौशल या ज्ञान नहीं है.
ऐसे संस्थानों ने बढ़ाई समस्या
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय शिक्षा व्यवस्था की खाई को थोक में खुल रहे वैसे छोटे प्राइवेट कॉलेज और बड़ी कर रहे हैं, जिनके पास बुनियादी संरचना तक नहीं है. कई कॉलेज तो दो कमरों के अपार्टमेंट में चल रहे हैं. ऐसे कॉलेजों में न तो नियमित क्लास होती हैं, न ही योग्य शिक्षक रखे जाते हैं. इसके अलावा ये कॉलेज पुराने ढर्रे के पाठ्यक्रमों को घसीटते चले जाते हैं और अपने स्टूडेंट्स को कोई प्रैक्टिकल एक्सपीरियंस या जॉब प्लेसमेंट नहीं दिला पाते हैं.
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में की गई बातें गलत भी नहीं हैं. देश के हर छोटे-बड़े शहरों में ऐसे शैक्षणिक संस्थान खुलेआम मिल जाते हैं, जो तरह-तरह के कोर्स ऑफर कर युवाओं को नौकरी दिलाने का प्रलोभन देते हैं. नौकरी की चाह में युवा इनके झांसे में आ जाते हैं. ऐसे में उनके पास डिग्री तो आती है, लेकिन वाकई में उस डिग्री की वैल्यू रद्दी बराबर ही होती है.
नौकरी लायक नहीं आधे ग्रेजुएट्स
भारत के शैक्षणिक क्षेत्र की बात करें तो यह एक बड़ी इंडस्ट्री के तौर पर उभरा है. भारत में संगठित शिक्षा क्षेत्र करीब 120 बिलियन डॉलर का बाजार है. इतने बड़े बाजार की पोल टैलेंट असेसमेंट फर्म व्हीबॉक्स की एक स्टडी के रिजल्टों से खुलती है. व्हीबॉक्स की स्टडी बताती है कि शिक्षा व्यवस्था की खामी के चलते भारत के लगभग आधे ग्रेजुएट्स भविष्य में नौकरी पाने के लायक नहीं हैं. ब्लूमबर्ग को कई कंपनियां इंटरव्यू में बताती हैं कि भारत की मिश्रित शिक्षा व्यवस्था के चलते उन्हें योग्य उम्मीदवार हायर करने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है.
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