Year Ender 2018: साल भर सरकार और आर्थिक जगत की इन हस्तियों के बीच रहा टकराव
यहां आप जान सकते हैं कि साल भर सरकार और आर्थिक जगत की किन हस्तियों के बीच तनाव रहा जिसने देश के आर्थिक माहौल को गर्मा दिया. आरबीआई के तात्कालिक गवर्नर से लेकर पूर्व गवर्नर के नाम इनमें शामिल हैं.
नई दिल्ली: साल 2018 भारतीय अर्थव्यवस्था में काफी उठापटक वाला रहा. केंद्र सरकार और आरबीआई के बीच सरप्लस के लिए मची लड़ाई के कारण काफी हंगामा हुआ, जिसके बाद आरबीआई के गवर्नर उर्जित पटेल ने जब अपना इस्तीफा दिया तो इसे भी एक प्रमुख वजह माना गया. वहीं देश के मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया. इन सब के बीच पूर्व गवर्नर रघुरान राजन ने भी नोटबंदी को लेकर कई नाकामियां बताई.
अरविंद सुब्रमण्यन भारत सरकार के पूर्व आर्थिक सलहकार अरविंद सुब्रमण्यन इस साल के शुरुआत में मुख्य आर्थिक सलाहकार के पद से हट गए थे. वो करीब चार साल तक इस पद पर रहे थे. सुब्रमण्यन की एक किताब आ रही है- "ऑफ काउंसल: द चैलेंज ऑफ द मोदी-जेटली इकॉनमी", जिसमें उन्होंने नोटबंदी पर अपनी चुप्पी तोड़ी है. इससे पहले 8 नवंबर, 2016 को लगाए गए नोटबंदी पर अभी तक वो कुछ नहीं बोले थे. भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार रहे अरविंद सुब्रमण्यन ने नोटबंदी पर पहली बार बड़ा बयान दिया. उन्होंने अपनी आनेवाली किताब में इस बारे में कहा कि यह एक बेहद सख्त फैसला था जिसने असंगठित क्षेत्र को बुरी तरह प्रभावित किया. पूर्व सीईए ने कहा कि एक बार में 86 फीसदी से अधिक करेंसी का अर्थवव्यस्था से वापस ले लेना एक बड़ा बेरहम मौद्रिक सदमा था. उन्होंने कहा कि इस निर्णय के कारण पहले से धीमी अर्थवव्यस्था और तेजी से गिरने लगी.
रघुराम राजन आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन इस साल नोटबंदी से लेकर एनपीए पर दिये गए अपने बयान की वजह से काफी चर्चा में रहे. एनपीए पर बोलते हुए इस साल रघुराम राजन ने कहा था कि मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली संसद की प्राक्कलन समिति को भेजे जवाब में घोटालों की जांच में देरी और फैसले लेने में देरी की वजह से बैंकों का डूबा कर्ज (एनपीए) बढ़ता चला गया. राजन ने बताया है कि बैंकों ने लोन को एनपीए में बदलने से बचाने के लिए ज्यादा लोन दिए. 2006 से पहले बुनियादी क्षेत्र में पैसा लगाना फायदेमंद था. इस दौरान SBI कैप्स और IDBI बैंकों ने खुले हाथ से कर्ज दिए. बैंकों का अति आशावादी होना घातक साबित हुआ. लोन देने में सावधानी नहीं रखी गई. इसके साथ ही जितने लाभ की उम्मीद की गई थी, उतना लाभ नहीं हुआ.
वहीं नोटबंदी पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि नोटबंदी और जीएसटी देश की आर्थिक विकास दर की राह में आने वाली ऐसी दो बड़ी अड़चन थी. इसने पिछले साल विकास की रफ्तार पर असर डाला. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सात फीसदी की मौजूदा विकास दर देश की जरूरतों के हिसाब से पर्याप्त नहीं है. रघुराम राजन ने कहा, 'नोटबंदी और जीएसटी के दो लगातार झटकों ने देश की आर्थिक वृद्धि पर गंभीर असर डाला. देश की वृद्धि दर ऐसे समय में गिरने लग गयी जब वैश्विक आर्थिक विकास दर गति पकड़ रही थी.'
उर्जित पटेल मोदी सरकार से लंबी खींचतान और तनातनी के बाद रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के गवर्नर उर्जित पटेल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. उर्जित पटेल का कार्यकाल सितंबर 2019 तक था लेकिन 9 महीने पहले ही आरबीआई गवर्नर ने इस्तीफा दे दिया. उर्जित पटेल ने अपने इस्तीफे पर कहा था, मैंने व्यक्तिगत वजह से अपने पद से इस्तीफा देने का फैसले किया, जो तत्काल प्रभाव से लागू होगा. ये मेरे लिए गर्व की बात है कि मैंने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया में विभिन्न पदों पर काम किया.
उर्जित पटेल चार सितंबर 2016 को रघुराम राजन की जगह आरबीआई गवर्नर बने थे. उसके बाद से ही नोटबंदी और अन्य मसलों को लेकर उनकी आलोचना होती रही. इस साल भारत सरकार और रिजर्व बैंक की सरप्लस को लेकर हुई खींचातानी को भी उर्जित पटेल के इस्तीफे की एक वजह माना गया था.