Year Ender 2022: लिस्टेड कंपनियों के शेयरों में गिरावट आने और जियो-पॉलिटिकल तनाव के कारण आई अस्थिरता से प्राइमरी मार्केट्स में सेंटीमेंट पर असर देखा गया. इसके चलते इनीशियल पब्लिक ऑफर (आईपीओ) के जरिये साल 2022 में महज 57,000 करोड़ रुपये ही जुटाए जा सके. नए साल में इन गतिविधियों में और भी सुस्ती आने का अनुमान है.


LIC के निर्गम से 2022 में मिला आईपीओ बाजार को सहारा


इस साल आईपीओ के जरिये जुटाए गए फंड में से 20,557 करोड़ रुपये यानी 35 फीसदी हिस्सेदारी अकेले एलआईसी के आईपीओ की थी. अगर इस साल एलआईसी का आईपीओ नहीं आया होता तो आईपीओ के लिस्टिंग शेयरों की बिक्री से होने वाला कुल कलेक्शन और भी कम हो जाता. बढ़ती महंगाई दर के बीच ब्याज दरों में बढ़ोतरी और मंदी की आशंका के कारण 2022 का साल निवेशकों के लिए परेशानी भरा रहा.


साल 2021 में जुटाए गए थे 1.2 लाख करोड़ रुपये- जानें साल 2022 का हाल


प्राइम डेटाबेस के आंकड़ों के मुताबिक, इस साल 16 दिसंबर तक कुल 36 कंपनियां अपने आईपीओ लेकर आईं जिससे 56,940 करोड़ रुपये जुटाए गए. अगले हफ्ते दो और कंपनियों के आईपीओ आने वाले हैं जिसके बाद यह रकम और बढ़ जाएगी. साल 2021 में 63 कंपनियों ने पब्लिक इश्यू से 1.2 लाख करोड़ रुपये जुटाये थे जो बीते दो दशकों (20 साल) में आईपीओ का सबसे अच्छा साल रहा था. इसके पहले 2020 में 15 कंपनियों ने आईपीओ के जरिए 26,611 करोड़ रुपये जुटाये थे. आईपीओ के अलावा रूचि सोया की अपनी पब्लिक ऑफरिंग से 4,300 करोड़ रुपये जुटाए गए थे.


जानें क्या कहते हैं जानकार


ट्रू बीकन एंड जिरोधा के को-फाउंडर निखिल कामत ने कहा, "दुनियाभर में विकास दर के मंद पड़ने के बीच 2023 मुश्किल साल रहने वाला है. भारत में भी इसके निगेटिव असर नजर आएंगे. मेरा अनुमान है कि 2023 में बाजार नरम रह सकता है और आईपीओ के जरिये रकम जुटाने की गतिविधियों में भी अगले साल कमी आ सकती है या फिर यह 2022 के स्तर पर ही रह सकता है.


2023 के लिए क्या मानते हैं जानकार


जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेस में रिसर्च चीफ विनोद नायर ने कहा कि शेयर बाजारों में अस्थिरता रहने की आशंका के बीच 2023 में आईपीओ का कुल आकार कम रहने का अनुमान है. उन्होंने कहा कि हाल में आए आईपीओ के कमजोर प्रदर्शन का भी निवेशकों पर असर पड़ने और उसकी वजह से निकट भविष्य में कमजोर प्रतिक्रिया रहने का अनुमान है.


रूस-यूक्रेन युद्ध छिड़ने से भी बिगड़ी स्थिति


फरवरी में रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ने की वजह से निवेशकों के लिए माहौल परेशानी भरा रहा क्योंकि भारत समेत दुनियाभर के बाजारों में गिरावट आई. इसके अलावा दुनियाभर के सेंट्रल बैंकों ने बढ़ती महंगाई दर को काबू में करने के लिए ब्याज दरें बढ़ाईं इससे भी प्राइमरी मार्केट्स के सेंटीमेट्स पर असर देखा गया है. इसका असर शेयरों के दाम पर पड़ा और कंपनियों ने आईपीओ लाने की योजना टाल दी.


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