सस्ते ब्याज दरों के दौर का इंतजार कर रहे लोगों को अभी निराश होना पड़ सकता है. होम लोन से लेकर कार लोन और पर्सनल लोन तक ब्याज दरों में कटौती में अभी देरी होने के अनुमान हैं. अमेरिकी सेंट्रल बैंक के हालिया फैसले से इंतजार के लंबा होने की आशंका बढ़ गई है.
फेडरल चेयरमैन ने किया ये ऐलान
अमेरिकी सेंट्रल बैंक फेडरल रिजर्व की हालिया नीतिगत बैठक के बाद चेयरमैन जोरोम पॉवेल ने मंगलवार को ताजी रणनीति के बारे में जानकारी दी. उन्होंने कहा कि फेडरल रिजर्व ने अभी ब्याज दरों को कम करने के लिए वेट एंड वॉच की रणनीति अपनाते रहने का फैसला लिया है. इसका मतलब हुआ कि फेडरल रिजर्व ब्याज दरों को कम करने का फैसला लेने से पहले महंगाई के आंकड़ों के कम होने का और इंतजार करने वाला है.
अनुमान से ज्यादा लगेगा समय
इससे पहले ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि साल के मध्य तक फेडरल रिजर्व के द्वारा ब्याज दरों में पहली कटौती की जा सकती है. हालांकि बाद में कई जरूरी चीजों की कीमतें बढ़ने और महंगाई में फिर से तेजी का दौर लौटने से ब्याज दरों के कम होने की उम्मीद समाप्त हो गई. फेड चेयरमैन पॉवेल ने भी कहा कि अब ब्याज दरों को कम करने लायक विश्वास पैदा करने के लिए पहले के अनुमानों से ज्यादा समय लगने वाला है.
फेड रिजर्व के फैसलों का असर
अमेरिकी फेडरल रिजर्व के द्वारा ब्याज दरों में कटौती के फैसले को टालने का असर रिजर्व बैंक की पॉलिसी पर भी पड़ने की संभावना है. दुनिया के ज्यादातर सेंट्रल बैंक यूएस फेड की तर्ज पर अपनी नीतिगत दरों का फैसला करते हैं. कोविड के बाद जब ब्याज दरें रिकॉर्ड निचले स्तर पर चली गई थीं और उसके बाद मई 2022 में जब ब्याज दरों को बढ़ाने की शुरुआत की गई थी, उस समय भी रिजर्व बैंक ने फेडरल रिजर्व का अनुकरण किया था. अप्रैल 2022 की एमपीसी में महंगाई को नियंत्रित बताने के बाद रिजर्व बैंक ने मई 2022 में आपात बैठक कर ब्याज दरों को बढ़ाने की शुरुआत की थी, क्योंकि उस समय फेडरल रिजर्व ने नीति को बदलने का ऐलान कर दिया था.
4 फीसदी से ज्यादा है खुदरा महंगाई
घरेलू स्तर पर स्थितियों को देखें तो वे वैसे भी फिलहाल ब्याज दरों को कम करने के अनुकूल नहीं हुई हैं. एक दिन पहले जारी आंकड़ों में थोक महंगाई 13 महीने के उच्च स्तर पर पहुंच गई हैं. उससे पहले खुदरा महंगाई के आंकड़े में कुछ कमी आई थी लेकिन इसकी दर अभी भी रिजर्व बैंक के 4 फीसदी के लक्ष्य से ऊपर है. रिजर्व बैंक खुदरा महंगाई की दर देखकर ब्याज दरों पर फैसला लेता है.
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