अगर आपको लोन की जरूरत है तो सिर्फ बैंक या एनबीएफसी ही एक मात्र जरिया नहीं हैं. आपके पास इंश्योरेंस पॉलिसी है तो इमरजेंसी के वक्त इसके एवज में आसानी से लोन ले सकते हैं. चूंकि यह पर्सनल लोन से सस्ता होता है, इसलिए बहुत सारे लोग अपनी पॉलिसी के एवज में इंश्योरेंस कंपनियों से लोन लेते हैं.
ये लोन जल्दी मिल जाते हैं, इसलिए भी लोग इसे चुनते हैं. ये लोन पॉलिसी में जमा रकम के सरेंडर वैल्यू के आधार दिए जाते हैं. इसलिए प्रोसेसिंग आसान और जल्दी होती है. ज्यादातर मामलों में पॉलिसीधारक को सिर्फ अपने प्रीमियम के साथ लिए गए लोन का ब्याज देना होता है.
चुनिंदा स्कीमों पर ही लोन
इंश्योरेंस पॉलिसी के एवज में लोन सिर्फ चुनिंदा ट्रेडिशनल और एनडॉ पॉलिसी के एवज में ही मिलता है. इन पॉलिसी की सरेंडर वैल्यू भी होनी चाहिए. यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पॉलिसी के एवज में लोन के लिए वेटिंग पीरियड भी होता है. पॉलिसी शुरू करने के तीन साल बाद ही आप इसके एवज में लोन ले सकते हैं.
टर्म प्लान के एवज में लोन नहीं
टर्म इंश्योरेंस पॉलिसी के एवज में लोन नहीं मिलता है. हालांकि कुछ कंपनिया यूलिप प्लान के एवज में लोन देती हैं लेकिन इनकी संख्या काफी कम है.
क्या है सरेंडर वैल्यू
सरेंडर वैल्यू वह राशि होती है जो पॉलिसी होल्डर के मैच्योरिटी से पहले पॉलिसी छोड़ देने पर उसे मिलती है. तीन साल तक प्रीमियम देने के बाद ही पॉलिसी होल्डर सरेंडर वैल्यू का हकदार होता है.
बरतें ये सावधानियां
चूंकि इंश्योरेंस पॉलिसी वित्तीय सुरक्षा के लिए होती है इसलिए इसके एवज मे लोन इमरजेंसी में ही लेना चाहिए वो भी कम अवधि के लिए. पॉलिसी होल्डर को पॉलिसी लेते समय यह देखना चाहिए कि इसके एवज में इसे लोन मिल सकता है या नहीं. लंबे वक्त तक प्रीमियम जमा करने पर लोन की रकम भी ज्यादा हो जाती है. यह याद रखें कि अगर प्रीमियम के साथ लोन का ब्याज अदा नहीं किया गया तो पॉलिसी के तहत कवर जोखिम के एवज में मिलने वाले लाभ से आप महरूम हो जाएंगे.