First Female Judge of SC: "मैंने एक बंद दरवाज़े को खोला था.", 'द स्क्रोल' को दिए गए एक इंटरव्यू में यह कहा था भारत ही नहीं बल्कि एशिया में पहली सुप्रीम कोर्ट की महिला जज एम. फातिमा बीवी (Supreme Court woman Judge M. Fathima Beevi) ने. वह पहली ऐसी महिला हैं जिन्हें सुप्रीम कोर्ट में जज के तौर पर नियुक्त किया गया था.
बीते 25 जुलाई को द्रौपदी मुर्मू ने भारत के राष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण किया. देश के शीर्ष पद पर पहुंचने वाली वह पहली आदिवासी महिला हैं. इस सीरीज में हम ऐसी ही महिलाओं के बारे में बताएंगे जिनके हार ना मानने की जिद, कड़ी मेहनत और ताकत ने रूढ़िवादी और सभी तरह की विवशताओं के बंधन तोड़ अपने हाथों से नए प्रतिमान गढ़ें.
एम. फातिमा बीबी का नाम उन चुनिंदा महिलाओं में लिया जाता है जिन्होंने पुरुष प्रधान न्यायतंत्र में महिलाओं के लिए रास्ता बनाया है. फातिमा बीबी को 1989 में सुप्रीम कोर्ट का जज़ नियुक्त किया गया. साल 1950 में सुप्रीम कोर्ट की स्थापना होने के बाद देश को पहली महिला जज मिलने में 39 साल लग गए थे. इससे पहले वह साल 1983 में केरल हाई कोर्ट में जज के पद पर नियुक्त की गई थीं. वहां उन्होंने 6 साल यानी 1989 तक अपनी सेवा दी. हाई कोर्ट के जज़ के पद से रिटायर होने के महज 6 महीने बाद ही उन्हें 1989 में सुप्रीम कोर्ट का जज़ नियुक्त किया गया. यह इतिहास में एक सुनहरा पल था क्योंकि किसी महिला को सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचने में लगभग 4 दशक लग गए.
फातिमा बीबी का बचपन
फातिमा बीबी का जन्म 30 अप्रैल, 1927 में केरल के पत्तनम्तिट्टा में हुआ था. उनके पिता का नाम मीरा साहिब और मां का नाम खदीजा बीबी है. उनकी शुरुआती शिक्षा पत्तनम्तिट्टा के ही कैथीलोकेट स्कूल में हुई. इसके बाद उन्होंने त्रिवेंद्रम लॉ कॉलेज से कानून की पढाई की.
शुरुआत से ही पढ़ाई में अच्छी रहने वाली फातिमा ने साल 1950 में भारत के बार काउंसिल की परीक्षा को टॉप किया. वह उस वक्त इस परीक्षा में टॉप करने वाली पहली महिला थीं. उसी साल नवंबर के महीने में फातिमा ने वकील के रूप में रजिस्ट्रेशन किया और केरल की सबसे निचली न्यायपालिका से अपनी प्रैक्टिस शुरू की. सुप्रीम कोर्ट की जज बनने से पहले फातिमा बीबी ने न्यायिक सेवाओं में ड्यूटी की. वहीं सुप्रीम कोर्ट के जज से रिटायर होने के बाद भी फातिमा बीबी तमिलनाडु की गवर्नर भी रहीं. 25 जनवरी,1997 को उन्हें तमिलनाडु का गवर्नर नियुक्त किया गया.
वर्तमान में महिला न्यायाधीशों की संख्या
अपने एक इंटरव्यू के दौरान इस क्षेत्र में महिलाओं की भागिदारी को लेकर फातिमा बीबी ने कहा था,''बार और बेंच, दोनों ही क्षेत्रों में अब बहुत सी महिलाएं हैं. लेकिन उनकी भागीदारी कम है. उनका प्रतिनिधित्व पुरुषों के बराबर नहीं है. इसके लिए ऐतिहासिक कारण भी है कि महिलाओं ने देर से यह क्षेत्र चुना. महिलाओं को न्यायपालिका में बराबरी का प्रतिनिधित्व करने में समय लगेगा.''
वर्तमान स्थिति देखें तो फातिमा बीबी ने दशकों पहले देश की महिलाओं के लिए दरवाजा खोल तो दिया था लेकिन आज भी इस क्षेत्र में महिलाओं को वो मुकाम हासिल नहीं हुआ है जिनकी वह हकदार हैं. सुप्रीम कोर्ट के पिछले 71 सालों के इतिहास में 256 नियुक्त जजों में से केवल 11 (4.2 फ़ीसदी) महिला हैं. वर्तमान में सुप्रीम कोर्ट में केवल चार महिला जज कार्यरत हैं. हालांकि ये अबतक की महिला जजों की सबसे ज्यादा संख्या है. इससे पहले कभी भी सुप्रीम कोर्ट में एकसाथ चार महिला जज नहीं रहीं.
इसके अलावा देश के सभी राज्यों में कुल 25 हाई कोर्ट है. इन कोर्ट में कुल 667 जज नयु्क्त हैं जिसमें महिला जजों की संख्या केवल 81 यानी 11.96 फीसदी है. वहीं देश में पांच हाईकोर्ट ऐसे भी हैं जहां एक भी महिला जज कार्यरत नहीं हैं. भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के पद पर आज तक किसी भी महिला जज को नियुक्त नहीं किया गया है.
1923 में दी गई थी वकालत करने की इजाजत
न्यायतंत्र में लैंगिक समानता का मुद्दा काफी पहले से चिंताजन रहा है. देश की आबादी की बात करें तो पुरुष और महिलाओं का अनुपात लगभग 50-50 प्रतिशत ही है. लेकिन दशकों बाद आज भी महिलाओं के लिए इस क्षेत्र में अपनी जगह बनाना किसी मील का पत्थर तय करने से कम नहीं है. सबसे पहले महिलाओं को वकालत करने की अनुमति साल 1923 में लीगल प्रैक्टिशनर एक्ट के तहत दी गई थी. इससे पहले इस पेशे में केवल पुरुष ही आते थें.
अमेरिका में है सबसे ज्यादा महिला जज
एक तरफ जहां आज़ादी के 75 साल बाद भी हमारा देश न्यायतंत्र में महिलाओं के लिए जगह बनाने की लड़ाई लड़ रहा है. वहीं दूसरी तरफ कुछ ऐसे भी देश हैं जहां न्यायपालिका में महिलाओं की भागिदारी बराबर है. अमेरिका में 34 फीसदी जज महिलाएं हैं. जबकि ब्रिटेन में, 32 फ़ीसदी जज महिलाएं हैं, इसके अलावा इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस में कुल 15 में से तीन जज महिलाएं हैं, जो फ़ीसदी में 20 ठहरता है.
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