Hyderabad News: हैदराबाद में 92 साल के बुजुर्ग ने पेश की मिसाल, 'द्वीपदा काव्यम' में लिखी रामायण
हैदराबाद में एक 92 वर्षीय बुजुर्ज ने एक नई मिसाल कायम करते हुए 'द्वीपदा काव्यम' में रामायण लिखी है. वह कहते है कि ये उनका बचपन से सपना था लेकिन रिटायरमेंट के बाद उन्होंने अपने इस सपने को पूरा किया.
Hyderabad News: 92 साल की उम्र में, ज्यादातर बुजुर्ग के हाथ कोई भी काम करते समय कांपने लगते हैं. इस उम्र में कांपते हाथों से लिखना बेहद चुनौतीपूर्ण होता है. लेकिन 92 वर्षीय पेरेपी मल्लिकार्जुन शर्मा ने रामायण के सैकड़ों पृष्ठों को एक नए रूप में लिखकर एक मिसाल कायम की है. ऋषि वाल्मीकि द्वारा लिखे गए महाकाव्य रामायण का कई क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है लेकिन शर्मा ने स्पष्ट रूप से भगवान राम के जन्म से लेकर उनके पट्टाभिषेक तक अपने शब्दों में गाथा को फिर से लिखने के लिए 'द्वीपदा काव्यम' या दोहे मीटर का इस्तेमाल किया है.
मां से सुनी थी पहली बार रामायण
सनथनगर में अपने बोराबंदा निवास में अपने डेस्क पर, शर्मा अपने राइटिंग पैड में उल्लेखनीय रूप से सुव्यवस्थित नोट्स बनाते थे, जिसे बाद में वह अपने डेस्कटॉप कंप्यूटर में फीड कर देते थे. इस काम में काफी समय लगता है लेकिन इसे लेकर उन्होंने कभी शिकायत नहीं की. शर्मा बताते हैं,“मेरी मां पेरेपी राजम्मा ने सबसे पहले मुझे घर पर रामायण की कहानी सुनाई थी. मैं उनकी गोद में बैठकर सुनता था. मैंने अपना अधिकांश जीवन वेद व्यास अध्यात्म रामायण और वाल्मीकि रामायण से मंत्रमुग्ध होने में बिताया है. कई परस्पर जुड़ी कहानियों ने मेरी रुचि को बढ़ा दिया. हर बार जब मैं रामायण पढ़ता हूं तो मैं कुछ नया और आकर्षक सीखता हूं. ”
बचपन से द्विपद मीटर में रामायण लिखना चाहते थे
शर्मा बताते हैं कि जब वह छोटे थे तभी से वह हमेशा द्विपद मीटर में रामायण लिखना चाहते थे, लेकिन वह अपने इस सपनों को जिम्मेदारियों की वजह से पूरा नहीं कर पा रहे थे. उन्हें अपने परिवार की देखभाल करनी थी और यह सुनिश्चित करना था कि उनके बच्चे - जिनमें से दो पूर्वी अफ्रीका में हैं - को अच्छी शिक्षा मिल सके.
कैसे पूरी की 'श्री ब्रह्मसूत्र रामायणम'
15 वर्षों से हर दिन कुछ दोहे लिखते हुए, शर्मा ने 'श्री ब्रह्मसूत्र रामायणम' समाप्त किया है, जिसे उन्होंने राज्य वन विभाग से सेवानिवृत्त होने के बाद 77 वर्ष की आयु में शुरू किया था. पिछले 15 वर्षों से, उनकी दिनचर्या सुबह 5 बजे उठने और अपने जीवन के मिशन को पूरा करने पर केंद्रित रही है. इस दौरान वह कई घंटों तक अपने कंप्यूटर पर समय बिताते रहे हैं.
'श्री ब्रह्मसूत्र रामायणम' में क्या है खास
'श्री ब्रह्मसूत्र रामायणम' में, शर्मा ने दिखाया है कि कैसे महाकाव्य की नैतिकता आज भी प्रासंगिक है और भगवान राम के जीवन के बारे में जानने से हर कोई कैसे लाभ उठा सकता है. "श्री ब्रह्मसूत्र रामायणम में 557 पृष्ठ हैं, जिसमें द्विपाद मीटर में 13,167 दोहे हैं, और यह छह कांडों (भागों) में विभाजित है, बाला कांड, अयोध्या कांड से लेकर उत्तरा कांड तक, जिनमें से प्रत्येक खंड भगवान राम के युग के जीवन के क्षणों पर केंद्रित हैं. द्विपद मीटर में प्रत्येक दोहा प्रासा से जुड़ा हुआ है. मुझे उम्मीद है कि मेरी किताब मेरे पोते-पोतियों को रामायण की कहानियों को उसी तरह सीखने में मदद करेगी जैसे मेरे बच्चों की की थी."
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