Madhya Pradesh News: मध्य प्रदेश के इंदौर स्मार्ट सिटी में भ्रष्टाचार के खिलाफ महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने कमर कस ली है. उन्होंने कहा कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत जिस एजेंसी को कचरा प्लांट का काम दिया गया था, उसे तय राजस्व देना था. साथ ही तय राजस्व न देने और टेंडर की शर्तों के खिलाफ जाने के बावजूद भी उनका टेंडर बढ़ा दिया गया. इससे पता चलता है कि एजेंसी को सीधा लाभ दिया गया है, जिससे शहर के सूखे कचरे के प्रसंस्करण में भारी नुकसान हुआ है.


महापौर ने कहा कि 'जब मुझे मामले की जानकारी मिली तो मैंने मुख्यमंत्री मोहन यादव से इसकी जांच कराने का अनुरोध किया. यह उच्च स्तर की धोखाधड़ी है और यह शहर के साथ धोखा करने जैसा है और ऐसे किसी भी मामले में दोषी लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करना हमारी जिम्मेदारी है. भार्गव ने कलेक्टर से इंदौर स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट लिमिटेड के लिए काम करने वाली एजेंसी के अनुबंध के अवैध विस्तार के मामले की जांच करने को कहा है.


क्या है पूरा मामला?
दरअसल, मामला इंदौर स्मार्ट सिटी डेवलपमेंट लिमिटेड और नेपरा रिसोर्स मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड के बीच एक अनुबंध के सात साल के लिए गैर कानूनी रूप से बढ़ाए गए एक्सटेंशन से संबंधित है. यह एक्सटेंशन इंदौर नगर निगम के सूखे कचरे के लिए दिया गया था. इसमें 300 टीपीडी क्षमता की ऑटोमेटेड मेटेरियल रिकवरी फैसिलिटी की आपूर्ति, स्थापना और कमीशनिंग के साथ-साथ पीपीपी मॉडल के तहत देवगुराड़िया में संचालन और रखरखाव के लिए जारी किया गया था.


बता दें इस मामले में इंदौर नगर निगम के एक एमआईसी मेंबर द्वारा निगम की पूर्व आयुक्त प्रतिभा पाल के कार्यकाल के दौरान की गई नियमों और विनियमों की अवहेलना की शिकायत की गयी थी. एक अक्तूबर 2018 को हुए इस समझौते को बढ़ा दिया गया, जबकि मूल अनुबंध के पूरा होने में तीन साल से ज्यादा का समय बाकी था. 


समझौते में स्पष्ट रूप से प्रावधान है कि "यदि ठेकेदार अगले दो सालों तक टेंडर में तय रॉयल्टी का भुगतान करने में विफल रहता है, तो अनुबंध समाप्त कर दिया जाएगा. आईएससीडीएल की नोटशीट के अनुसार बकाया रॉयल्टी राशि 4,42,42,458 रुपये है और उक्त बकाया रॉयल्टी राशि को वापस पाने के लिए कभी कोई प्रयास नहीं किया गया और न ही अनुबंध को समाप्त करने के लिए कभी कोई कार्रवाई की गई."



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