(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Rangbhari Panchami 2023: देश ही नहीं विदेश में भी प्रसिद्ध है इंदौर की रंग पंचमी, जानिए- इस त्योहार पर क्या होता है खास?
Indore Rang Panchami: रंग पंचमी को होली का समापन माना जाता है. इस दिन देवताओं संग रंगो से खेलने पर घर में धन समृद्धि की वृद्धि होती है. इंदौर में बड़े स्तर पर गेर निकाली जाती है.
Indore Rang Panchmi Celebration: रंगों के त्यौहार होली खेलने के नज़ारे हर साल सभी को प्रभावित करते हैं. लेकिन भारत में ऐसे कई राज्य हैं जहाँ होली के कुछ दिन बाद रंग पंचमी (Rang Panchami) नाम के पर्व को भी उतने ही धूम-धाम से मनाया जाता हैं. होली (Holi) खेलने का सिलसिला चैत्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ होकर कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि तक चलता है. पंचमी तिथि को रंग पंचमी के नाम से जाना जाता है. इस दिन को होली का समापन भी माना जाता है. इस दिन देवी-देवताओं को साथ होली खेलने का रिवाज है. रंग पंचमी, होली से इस मायने में अलग है कि इस दिन शरीर पर रंग नहीं लगाया जाता बल्कि रंग को हवा में उड़ाया जाता है. इस दिन घरों में विशेष भोजन बनाया जाता है, जिसे पूरन पोली कहा जाता है. यह माना जाता है की इस दिन देवताओं संग रंगो से खेलने पर घर में धन समृद्धि की वृद्धि होती है. यह त्यौहार देश के कई राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, राजस्थान और गुजरात पर मनाया जाता है लेकिन इस पर्व की धूम सबसे ज्यादा मध्य प्रदेश में देखने को मिलती है.
विश्वप्रसिद्ध है इंदौर की रंग पंचमी
मध्य प्रदेश की रंग पंचमी कई मायने में भिन्न है. इस दिन बड़े स्तर पर गेर निकाली जाती है. इसमें हजारों किलो गुलाल और पानी से लाखों लोगों को भिगोया जाता है. यह परंपरा 300 साल से चली आ रही है. इंदौर की गेर में विशेष रूप से विभिन्न राज्यों से सभी धर्म के लाखों लोग शामिल होते हैं. इसे देखने लोग विदेश से भी आते है. इन गेरो को यूनेस्को की ओर से संरक्षित घोषित कराने का प्रयास भी किया जा रहा है. वैश्विक महामारी कोरोनावायरस के चलते 2020 और 2021 में गेर निकालने पर पाबंदी लगा दी गयी थी. हालांकि, पिछले साल मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में फिर वही जोश से रंग पंचमी मनाई गयी थी.
रंग पंचमी के पीछे की पौराणिक कथा
बाकी भारतीयों त्योहारों की तरह ही रंग पंचमी को लेकर सिर्फ एक पौराणिक कथा नहीं है. ऐसी मान्यता है कि इसी दिन कृष्ण भगवान ने राधा के साथ होली खेली थी. इसलिए इस दिन श्रीकृष्ण और राधा रानी को रंग अर्पित किया जाता है. दूसरी मान्यता है कि होलाष्टक के दिन भगवान शिव ने जब कामदेव को भस्म कर दिया था तब पूरे देवलोक में उदासी छा गई थी. बिना कामदेव के संसार को चलना चिन्ता का विषय था. तब देवी-देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की. भगवान ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया. ऐसा करने से पूरे देवलोक में देवतागण आनंदित हो गए और रंगोत्सव मनाने लगे. तभी से हर साल चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को रंग पंचमी का उत्सव मनाया जाता है.
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