Kolkata Durga Puja 2022: इन दिनों देश ध्रुवीकरण और विभाजन से जूझ रहा है. ऐसे में कोलकाता में आगामी दुर्गा पूजा (Durga Puja) साम्प्रदायिक सौहार्द की मिसाल कायम कर रहा है. दरअसल यहां के कोलकाता शहर (Kolkata) के मुस्लिम बहुल इलाकों में भी दुर्गा पूजा (Durga Puja) का आयोजन और जश्न मुस्लिमों द्वारा उतना ही उत्साह के साथ किया जाता है जितना कि हिंदू-बहुल इलाकों में किया जाता है.
मुस्लिम सोशल एक्टिविस्ट 6 सालों से बना रहे दुर्गा पूजा की मिठाई
टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक शहर के शिब मंदिर सरबोजोनिन की खूंटी पूजा में, एक मुस्लिम सामाजिक कार्यकर्ता पिछले छह वर्षों से इस अवसर पर बांटी जाने वाली मिठाइयों को बनाने का इंचार्ज है. बीते रविवार को उन्होंने 125 लोगों के लिए खीर बनाई और मेहमानों को परोसी. वहीं पड़ोस के ही स्थानीय मुसलमानों ने 15 साल पहले बंद कर दी गई एक दुर्गा पूजा को पिछले साल पुनर्जीवित किया.
दुर्गा पूजा की मिठाई समुदायों के बीच बना रही साम्प्रदायिक सौहार्द
मुदर पथरिया ने छह साल पहले खूंटी पूजा के दिन मिठाई बनाने की जिम्मेदारी ली थी, जो दुर्गा पूजा के लिए पंडाल निर्माण की शुरुआत का प्रतीक है. पाथेरिया ने इस बारे में कहा कि,“शुरुआत में, मैंने मिठाइयों के लिए पैसे दिए लेकिन फिर मैंने अपने कुछ मुस्लिम दोस्तों के साथ खीर बनाना शुरू कर दिया और मेहमानों, क्लब के सदस्यों और आगंतुकों को परोसना शुरू कर दिया. खीर अब शिव मंदिर की वार्षिक परंपरा का हिस्सा बन गई है. ” उन्होंने कहा कि उत्सव में उनकी भागीदारी शुरू में उनके पड़ोस के प्रति उनके कर्तव्य से प्रेरित थी, लेकिन वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए, यह अब प्रासंगिक हो गया है और समुदायों के बीच साम्प्रदायिक सौहार्द बनाने का एक प्रयास है."
मुस्लिम युवाओं ने 15 साल पहले बंद हुई दुर्गा पूजा को फिर शुरू किया
टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक मुख्य रूप से उर्दू भाषी इलाके में स्थित अलीमुद्दीन स्ट्रीट के स्थानीय मुस्लिम युवाओं ने पिछले साल एक दुर्गा पूजा को पुनर्जीवित करने के लिए एक साथ मिलकर काम किया था. गौरतलब है कि 15 साल पहले ज्यादातर बंगाली हिंदू परिवारों के बाहर जाने के बाद इसे बंद कर दिया गया था. इस संबंध में एक सामाजिक कार्यकर्ता तौसीफ रहमान ने कहा, "हम में से अधिकांश के पास पड़ोस की दुर्गा पूजा की यादें थीं, इसलिए हम अपने बंगाली भाइयों और बहनों के साथ परंपरा को पुनर्जीवित करना चाहते थे, जिन्होंने अनुष्ठान करने की जिम्मेदारी ली थी, क्योंकि हम इसके बारे में नहीं जानते थे. समुदाय के मुस्लिम सदस्यों ने कुमारतुली से मूर्तियों को लाने, प्रसाद के लिए फल काटने और भोग बांटने में हिस्सा लिया. ”
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