Mumbai News: बॉम्बे हाईकोर्ट ने 16 हफ्ते की गर्भवती रेप पीड़िता को दी गर्भपात की अनुमति, जानिए क्या है पूरा मामला
Bombay High Court की नागपुर बेंच ने एक नाबालिग को उसकी 16 हफ्ते की प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करने की अनुमति दी है. कोर्ट ने कहा कि प्रेग्नेंसी जारी रखने की अनुमति देना युवती पर केवल बोझ होगा.
Minor Rape Victim: बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) की नागपुर बेंच (Nagpur Bench) ने अपने एक फैसले में यौन शोषण (Sexual Abuse) की शिकार एक नाबालिग को 16 हफ्ते की प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करने की अनुमति दे दी है. इस फैसले को सुनाते हुए बेंच ने कहा कि अगर नाबालिग को उसकी प्रेग्नेंसी जारी रखने की अनुमति दी गई तो यह न केवल उस पर बोझ होगा, बल्कि यह उसके मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक होगा." दरअसल, हत्या के एक मामले में आरोपी नाबालिग, एक ऑब्जर्वेशन होम में हिरासत में है.
जस्टिस ए.एस. चंदुरकर और उर्मिला जोशी-फाल्के ने 27 जून को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) की अनुमति देते हुए सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि "एक महिला का प्रजनन पसंद करने का अधिकार उसकी पर्सनल लिबर्टी का एक अविभाज्य हिस्सा है, जैसा कि जैसा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत परिकल्पित किया गया है. उसे बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता... उसके पास बच्चे को जन्म देने या न करने का विकल्प है."
नाबालिग याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट से एमटीपी की मांग की थी
हाईकोर्ट में एक नाबालिग की याचिका पर सुनवाई की गई. याचिकाकर्ता नाबालिग को हत्या के मामले में गिरफ्तार किया गया था, जिसमें एमटीपी की मांग की गई थी. जांच के दौरान पता चला कि वह यौन शोषण के कारण गर्भवती हुई थी. उसने अपनी प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करने की मांग करते हुए कहा कि उसकी आर्थिक स्थिति खराब है और वह यौन शोषण के कारण ट्रॉमा में है. ऐसी परिस्थितियों में, उसके लिए एक बच्चा पैदा करना मुश्किल होगा.
कोर्ट ने नाबालिग की मेडिकल रिपोर्ट मांगी थी
वहीं याचिकाकर्ता के वकीन ने कोर्ट में दलील दी कि एक बच्चे को पालने के लिए न तो वह आर्थिक रूप से और न ही मानसिक रूप से तैयार है. इसके अलावा, यह एक अनवॉन्टेड प्रेग्नेंसी थी. इसके बाद अदालत ने एक मेडिकल बोर्ड से उसकी मेडिकल रिपोर्ट मांगी थी, जिसने 16वें सप्ताह में होने के बावजूद उसकी गर्भावस्था को समाप्त करने की सहमति दी थी.बता दें कि एमटीपी एक्ट के तहत प्रेग्नेंसी के 20वें हफ्ते के बाद कोर्ट की इजाजत मांगी जाती है.
कोर्ट ने तमाम बातों का संज्ञान लेते हुए प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने की दी अनुमति
कोर्ट ने इस बात का संज्ञान लिया कि याचिकाकर्ता नाबालिग है और अविवाहित है. यौन शोषण का शिकार होने के अलावा, वह हत्या के एक अपराध के लिए एक ऑब्जर्वेशन होम में भी बंद है. आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि से आने के अलावा, नाबालिग की गर्भावस्था अवांछित है और वह गंभीर आघात से गुजर रही थी. इसके बाद कोर्ट ने प्रेग्नेंसी को टर्मिनेट करने की अनुमति देते हुए कहा कि, "ऐसी परिस्थितियों में और मामले को ओवरऑल देखते हुए, हमारा विचार है कि याचिकाकर्ता को इस तरह की अनुमति देने से इनकार करना उसे अपनी प्रेग्नेंसी को जारी रखने के लिए मजबूर करने के समान होगा जो परिस्थितियों में न केवल उस पर बोझ होगा, बल्कि यह उसके मानसिक स्वास्थ्य को भी गंभीर चोट पहुंचाएगा. ”
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