Crime in Mumbai: आलोचना के बाद मुंबई पुलिस कमिश्नर का आदेश, छेड़छाड़ और इस तरह के बाकी मामलों में पॉक्सो एक्ट के तहत दर्ज हो FIR
Mumbai Police News: आदेश के मुताबिक, ऐसे मामलों में वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक को संबंधित सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी) और डीसीपी से संपर्क करना चाहिए और प्राथमिकी दर्ज करने के निर्देश लेना चाहिए.
Mumbai Police on POCSO Act: मुंबई के पुलिस आयुक्त संजय पांडेय ने अपने पहले के आदेश में संशोधन करते हुए शहर की पुलिस को पॉक्सो अधिनियम के तहत छेड़छाड़ और अन्य अपराधों के ऐसे मामलों में तुरंत प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया है, जहां उन्हें किसी भी तरह की गड़बड़ी का संदेह नहीं हो. इससे पहले पांडे ने एक परिपत्र जारी कर पुलिस कर्मियों को निर्देशित किया था कि जोनल पुलिस उपायुक्त (डीसीपी) की अनुमति के बिना कानून के तहत छेड़छाड़ या अन्य अपराध की प्राथमिकी दर्ज नहीं की जानी चाहिए. इसके बाद पुलिस की जमकर आलोचना हुई और पुलिस ने शुक्रवार को संशोधित निर्देश जारी किया.
एसीपी और डीसीपी से संपर्क कर FIR दर्ज करने के आदेश
संशोधित आदेश में कहा गया है कि कभी-कभी संपत्ति के मसले, वित्तीय विवाद या व्यक्तिगत दुश्मनी के कारण यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत छेड़छाड़ की शिकायतें पुलिस में दर्ज कराई जाती हैं. आदेश के मुताबिक, ऐसे मामलों में वरिष्ठ पुलिस निरीक्षक को संबंधित सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी) और डीसीपी से संपर्क करना चाहिए और प्राथमिकी दर्ज करने के निर्देश लेना चाहिए.
इसमें कहा गया है कि थाना प्रभारी को एक स्टेशन डायरी रखनी चाहिए, जिसमें यह उल्लेख हो कि उन्होंने (मामला दर्ज करने की अनुमति के बारे में) किससे बात की है. प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश देने वाले एसीपी या डीसीपी को ललिता कुमारी मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश ध्यान में रखना चाहिए. ऐसे मामलों में कोई गिरफ्तारी करने से पहले अधिकारियों को एसीपी की मंजूरी लेनी चाहिए और जोनल डीसीपी को उन मामलों में व्यक्तिगत रूप से जांच की निगरानी करने का भी निर्देश दिया गया है.
छह जून को जारी सर्कुलर में क्या कहा गया था?
मुंबई पुलिस प्रमुख संजय पांडे ने छह जून को एक सर्कुलर जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि पॉक्सो कानून के तहत छेड़छाड़ या अन्य अपराध के मामले में प्राथमिकी एसीपी की सिफारिश पर और जोन के डीसीपी की अनुमति प्राप्त करने के बाद ही दर्ज की जानी चाहिए. इसका कारण यह बताया गया था कि कई बार संपत्ति या वित्तीय विवाद या व्यक्तिगत झगड़े के कारण इस कानून के तहत मामला दर्ज कराया जाता है.
हालांकि, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने यह कहते हुए आदेश को वापस लेने की मांग की थी कि यह यौन शोषण पीड़ितों के अधिकारों का हनन करेगा. राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने भी पांडे को आदेश तुरंत वापस लेने को कहा था. बंबई हाई कोर्ट ने पिछले बृहस्पतिवार को महाराष्ट्र सरकार से पूछा कि क्या मुंबई पुलिस आयुक्त द्वारा छह जून को जारी विवादास्पद परिपत्र को वापस लिया जा सकता है.
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