Sultan Palace: बिहार की राजधानी पटना के एक सदी पुराने सुल्तान पैलेस को बचाने के लिये जारी अभियान जोर पकड़ता दिख रहा है . इस विरासत इमारत को गिराकर उसके स्थान पर पांच सितारा होटल बनाने के बिहार सरकार के कदम के खिलाफ लोगों ने ऑनलाइन मुहिम भी शुरू की है. कुछ नागरिकों ने बुधवार शाम को ट्विटर पर इसे बचाने के लिये आह्वान किया था और इसके बाद इस प्रसिद्ध इमारत के संरक्षण के पक्ष में ट्वीट नजर आने लगे. देर रात तक ‘सेव सुल्तान पैलेस’ हैशटैग के साथ इस मुद्दे पर बड़ी संख्या में ट्वीट किए गए.


बिहार सरकार के फैसले के खिलाफ उठी आवाज


बिहार के छोटे कस्बों से लेकर दिल्ली व कोलकाता जैसे बड़े शहरों में भी बिहार सरकार के इस कदम के खिलाफ लोगों ने आवाज उठाई और बहुत से लोगों ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को टैग करते हुए ट्वीट में उनसे इमारत को न गिराने का अनुरोध किया. राम होल्कर नाम के एक शख्स ने ‘सेव सुल्तान पैलेस’ हैशटैग के साथ ट्वीट किया, “प्रिय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी, बेहद विनम्रता के साथ, ऐतिहासिक महल ध्वस्त नहीं किया जाना चाहिए...मुझे उम्मीद है कि आप ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया को बंद कर देंगे.” उन्होंने लोगों से आह्वान किया, “ऐतिहासिक इमारतों को ध्वस्त करने की प्रक्रिया पर सवाल उठाएं.”




लोगों ने शेयर की तस्वीरें


एक अन्य ट्विटर उपयोगकर्ता साहिल राजवी ने हिंदी में ट्वीट किया, “पटना में गिनी-चुनी ऐतिहासिक इमारतें बच गई हैं. उनमें से एक सुल्तान पैलेस मिश्रित स्थापत्य कला का नायाब नमूना है. सरकार ने सुल्तान पैलेस को जमींदोज कर पांच सितारा होटल बनाने का फैसला किया है. इस फैसले के खिलाफ इतिहासकार और नागरिक संस्थाओं के सदस्य कानूनी लड़ाई छेड़ने की तैयारी कर रहे हैं.” इस ऑनलाइन मुहिम में शामिल हुए लोगों ने बड़ी संख्या में सुल्तान पैलेस की तस्वीरें भी पोस्ट की.


पटना के प्रसिद्ध बैरिस्टर सर सुल्तान अहमद ने बनवाया था पेलेस


हाल ही में, देश के इतिहासकारों, संरक्षणवादियों और आम नागरिकों ने इस फैसले का पुरजोर विरोध किया था और सरकार से “वास्तुशिल्प के प्रतीक” व “पटना के गौरव” को संरक्षित करने की अपील की थी. आर-ब्लॉक क्षेत्र के पास ऐतिहासिक गार्डिनर रोड (अब बीर चंद पटेल रोड) पर स्थित सुल्तान पैलेस, 1922 में पटना के प्रसिद्ध बैरिस्टर सर सुल्तान अहमद द्वारा बनवाया गया था, जिन्होंने पटना उच्च न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में भी काम किया था. वह 1923 से 1930 तक पटना विश्वविद्यालय के पहले भारतीय कुलपति भी रहे थे.


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