Holi 2023: न रंग न गुलाल, रांची से सटे इस जिले में खेली जाती है ढेला मार होली, जानें- यहां की परंपरा
Lohardaga News: सेन्हा प्रखंड के बरही गांव में होली परंपरागत तरीके से मनाई जाती है , जिसमे रंगो की नहीं बल्कि पत्थरों की बरसात की जाती है.
Lohardaga Dhela Maar Holi: आपने मथुरा और वृन्दावन की मशहूर होली के बारे में तो जरूर सुना होगा. हमारे देश में हर कोने में अलग अलग तरीके से होली खेली जाती है. कहीं रंग गुलाल से कहीं फूलों की वर्षा से तो कहीं कीचड़ से ,लेकिन जिस अनोखी होली के बारे में आपको जानना चाहिए वो है झारखंड के लोहरदगा में खेली जाने वाली ढेला मार होली.
पत्थरों से खेली जाती है होली
झारखंड के लोहरदगा के सेन्हा प्रखंड के बरही गांव में एक ख़ास तरीके की होली खेली जाती है जिसका नाम है ढेला मार होली. यहाँ पर लोग रंग गुलाल से नहीं बल्कि पत्थरों से होली खेलते हैं. इस तरीके की ख़ास होली खेलने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. इस ख़ास तरीके की होली में शामिल होने क लिए हर साल सैंकड़ो की भीड़ जमा होती है. बरही गांव में होली परंपरागत तरीके से मनाई जाती है , जिसमे रंगो की नहीं बल्कि पत्थरों की बरसात करके होली खेली जाती है. यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ रही है लेकिन होली खेलने का तरीका अब भी वही है.
देवी मंडप में गड़े खंभे को छूने के लिए इकट्ठा होते हैं लोग
सेन्हा प्रखंड के बरही स्थित देवी मंडप के पास परंपरा के अनुसार होलिका दहन किया जाता है, जहां पर एक लकड़ी का खंभा गाड़ा जाता है. होली के दिन इस लकड़ी के खूंटे को छूने के लिए लोगों में होड़ मची रहती है. पहले लोग खंभे को छूने के लिए भागते हैं ,इसी बिच दर्शक में मौजूद लोग इनको पत्थरों से मारते हैं. मान्यता है कि इन पत्थरों से लोगों को चोट नहीं लगती. जो पत्थर मारने के बावजूद बिना डरे खंभे को छू लेता है, उसे सुख, शांति और सौभाग्य की प्राप्ति होती है.गांव के वृद्ध कहते हैं कि कभी किसी को पत्थर मारने से चोट नहीं लगी है. सैकड़ों की संख्या में लोग ढेला मार होली में भाग लेते है. इसे देखने के लिए लोग लोहरदगा से ही नहीं बल्कि रांची, गुमला, सिमडेगा के सीमावर्ती क्षेत्रों के अलावा काफी दूर-दूर से आते हैं.सेन्हा के पूर्व जिला परिषद सदस्य राम लखन प्रसाद का कहना है कि यह परंपरा हजारों वर्ष पुरानी है. आपसी सौहार्द के साथ होली एवं ढेला मार होली मनाई जाती है.
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