महामारी के दौरान 4 से 18 वर्ष के 80% छात्रों ने ई-क्लासेज के जरिए बहुत कम सीखा- सर्वे
गुरुवार को जारी यूनिसेफ के रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि भविष्य में लगभग 8% बच्चों के स्कूलों में लौटने की संभावना नहीं है. रिपोर्ट के मुताबिक छात्र स्कूल के मुकाबले घर पर काफी कम सीख रहे हैं.
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संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) द्वारा छह राज्यों में किए गए एक सर्वे से पता चला है कि 14 से 18 वर्ष की आयु के कम से कम 80% छात्रों ने स्कूलों में कक्षाओं में भाग लेने की तुलना में कोविड -19 महामारी के दौरान घर पर काफी कम सीखा.गुरुवार को जारी सर्वे रिपोर्ट में यह भी चेतावनी दी गई है कि भविष्य में लगभग 8% बच्चों के स्कूलों में लौटने की संभावना नहीं है.
रिमोट एजुकेशन से कम सीखते हैं छात्र
"ज्यादातर माता-पिता और किशोरों को लगता है कि छात्र स्कूल की तुलना में रिमोट एजुकेशन के माध्यम से कम सीखते हैं. 5 से 13 वर्ष की आयु के छात्रों के 73% माता-पिता और 14 से 18 वर्ष की आयु के 80% किशोरों की रिपोर्ट है कि छात्र स्कूल की तुलना में कुछ कम या काफी कम सीख रहे हैं. 67% शिक्षक मानते हैं कि छात्र अपने में पिछड़ गए हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर स्कूल खुले होते तो उनकी ओवरऑल ग्रोथ काफी अच्छी होती.
कोरोना महामारी की वजह से बंद कर दिए गए थे स्कूल
कोविड -19 महामारी के भयानक परिणाम को देखते हुए देश भर के स्कूल डेढ़ साल से अधिक समय से बंद थे. इस दौरान स्कूल क्लासेज को वर्चुअल प्लेटफॉर्म पर शिफ्ट कर दिया गया था. केंद्र ने पिछले साल अक्टूबर में राज्य सरकारों को कोविड -19 स्थिति को ध्यान में रखते हुए स्कूलों को फिर से खोलने का निर्णय लेने की अनुमति दी थी. जिसके बाद कई राज्यों ने आंशिक रूप से शारीरिक कक्षाएं फिर से शुरू कर दी थीं लेकिन इस साल अप्रैल में देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर आने के बाद फिर से सबकुछ पूरी तरह से बंद हो गया था.
वहीं अब जब मामलों में गिरावट दर्ज की जा रही है और कोविड-19 की स्थिति में सुधार हो रहा है तो कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों जैसे दिल्ली, तमिलनाडु, हरियाणा, मध्य प्रदेश, राजस्थान, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और असम ने शारीरिक कक्षाओं को फिर से शुरू करने के लिए स्कूलों को फिर से खोल दिया है.
सर्वे में 6,435 उत्तरदाताओं ने भाग लिया था
पिछले साल अगस्त और सितंबर के बीच कंप्यूटर-असिस्टेड टेलीफोनिक इंटरव्यू के माध्यम से छह राज्यों, मुख्य रूप से असम, बिहार, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में "कोविड -19 के संदर्भ में स्कूल बंद होने के दौरान सीखने का तेजी से मूल्यांकन" टाइटल वाला सर्वे किया गया था. इसमें माता-पिता, किशोरों और शिक्षकों सहित 6,435 उत्तरदाताओं ने भाग लिया था.
40% छात्रों ने पिछले 6 महीनों में रिमोट एजुकेशन नहीं ली
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 10% छात्र स्मार्टफोन, फीचर फोन, टेलीविजन (टीवी), रेडियो या लैपटॉप / कंप्यूटर जैसे डिवाइस एक्सेस नहीं कर सकते हैं. “यहां तक कि जब छात्रों के पास डिवाइस एक्सेस करने की सुविधा होती है, तब भी रिमोट एजुकेशन के लिए उनका उपयोग करने के बारे में जागरूकता कम हो सकती है. उत्तरदाताओं में से, जिन्होंने किसी भी रिमोट लर्निंग के अवसरों का उपयोग नहीं किया, उनमें से 45% ने किसी भी संसाधन के बारे में जानकारी नहीं होने की रिपोर्ट की. जिससे रिपोर्ट में कहा गया है कि छह सर्वे वाले राज्यों में 40% छात्रों ने पिछले 6 महीनों में रिमोट एजुकेशन के किसी भी फॉर्म का उपयोग नहीं किया.
8% शिक्षकों के पास पर्सनल स्मार्टफोन या लैपटॉप नहीं है
सर्वे यह भी खुलासा करता है कि 8% शिक्षकों के पास पर्सनल स्मार्टफोन या लैपटॉप नहीं है और 33% शिक्षकों ने कहा कि उन्हें रिमोट एजुकेशन से कोई बेनिफिट नहीं दिखता है.
डिजिटल जेंडर डिवाइड' को हाईलाइट करते हुए सर्वे में कहा गया है कि लड़कियों के बीच व्हाट्सएप और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल लड़कों की तुलना में 8% कम था. इसी तरह, सरकारी स्कूल के छात्रों के बीच इन माध्यमों का उपयोग निजी स्कूलों के छात्रों की तुलना में 10% कम था.
30-40% छात्र अपने शिक्षकों के संपर्क में नहीं
सर्वे के मुताबिक लगभग 30-40% छात्र अपने शिक्षकों के संपर्क में नहीं थे. रिपोर्ट में कहा गया है कि “5-13 वर्ष की आयु के 42% छात्र और 14-18 वर्ष की आयु के 29% छात्र अपने शिक्षकों के संपर्क में नहीं हैं . वास्तव में, शहरी क्षेत्रों के छात्र ग्रामीण क्षेत्रों के छात्रों की तुलना में अपने टीचर्स के संपर्क में ज्यादा रहते हैं.
यूनिसेफ ने लर्निंग के नुकसान को रोकने के लिए कई सिफारिशें की हैं
बता दें कि यूनिसेफ ने लर्निंग के नुकसान को रोकने के लिए कई इंटरमीडिएट, शॉर्ट और लॉन्ग उपायों की सिफारिश की है. सुझावों में टेस्टबुक्स और प्रिंट स्टडी मैटिरियल का डिस्ट्रीब्यूशन, खुले स्थानों का उपयोग करते हुए शिक्षक-छात्र की लगातार भागीदारी, शिक्षकों के लिए डेटा और डिवाइस की लागत पर सब्सिडी, छात्रों को ड्राप आउट से रोकने के लिए री-एनरोलमेंट अभियान, फिर से खोलने के दिशा-निर्देशों का प्रचार, आदि शामिल हैं.
यूनिसेफ इंडिया के प्रतिनिधि डॉ यास्मीन अली हक ने कहा, “कोविड -19 के कारण लंबे समय तक स्कूल बंद रहने से कई बच्चे सीखने, सोशल इंटरेक्शन और प्लेटाइम से चूक गए हैं जो उनके ओवरऑल डेवलेपमेंट और भलाई के लिए जरूरी है. हमारे पास बिहार जैसे राज्यों के उदाहरण हैं, जहां छात्रों के लिए सीखने में सहायता के लिए कई डिवाइस खरीदे जा रहे हैं. अब समय आ गया है कि बच्चों को वापस सीखने के लिए प्रेरित करने की योजना बनाई जाए और स्ट्रक्चर को स्थापित किया जाए जिसे वापस बेहतर और मजबूत बनाने की जरूरत है. ”
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