अपनी कविताओं से करते हैं युवाओं के दिलों पर राज, एजुकेशन से लेकर राजनीति तक दिखा चुके अपना 'विश्वास'
कुमार विश्वास उत्तर प्रदेश के पिलखुवा में जन्मे एक प्रसिद्ध कवि हैं. हिंदी साहित्य में पीएचडी करने के बाद उन्होंने 1994 में राजस्थान यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के तौर पर करियर शुरू किया.
कोई दीवाना कहता है तो कोई पागल समझता है, मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है... इस कविता का जिक्र हो तो बताना भी नहीं पड़ता कि बात किसकी हो रही है, क्योंकि वह कोई और नहीं, वन एंड ओनली कुमार विश्वास हैं. वह अपनी कविताओं से युवाओं के दिलों पर राज कर चुके हैं. साथ ही, एजुकेशन सेक्टर से लेकर राजनीति के मैदान में अपना विश्वास दिखा भी चुके हैं. एबीपी न्यूज के न्यूज मेकर ऑफ द ईयर 2024 में कुमार विश्वास को 'पोएट ऑफ द ईयर' अवॉर्ड दिया गया. उनकी चंद बातों से हम आपको करा रहे हैं रूबरू...
यूपी के इस शहर से रखते हैं ताल्लुक
उत्तर प्रदेश के पिलखुवा शहर में 10 फरवरी के दिन ब्राह्मण परिवार में जन्मे कुमार विश्वास आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. उनकी गिनती देश के उन प्रमुख और प्रभावशाली कवियों में होती है, जो अपनी कविता के माध्यम से हर दिल में जोश जगाने का माद्दा रखते हैं. इसके अलावा तीखी राजनीतिक टिप्पणियां हों या गहरी सांस्कृतिक अंतर्दृष्टि या धर्म पर गहन चिंतन, हर क्षेत्र में कुमार विश्वास का कोई सानी नहीं है. उनकी कविताएं हर किसी के दिल में इस कदर उतरती हैं कि हर कोई उनका दीवाना बन जाता है.
प्रोफेसर बनकर शुरू किया था करियर
पिलखुवा के लाला गंगा सहाय स्कूल से शुरुआती पढ़ाई-लिखाई करने वाले कुमार विश्वास ने पिलखुवा के राजपूताना रेजिमेंट इंटर कॉलेज से माध्यमिक शिक्षा पूरी की थी. इसके बाद उन्होंने हिंदी साहित्य में पोस्ट ग्रैजुएशन और पीएचडी की. बता दें कि कुमार विश्वास का करियर 1994 के दौरान राजस्थान यूनिवर्सिटी में बतौर प्रवक्ता शुरू हुआ था. इसके बाद 2007 में उनकी किताब कोई दीवाना कहता है प्रकाशित हुई, जिसने उन्हें हर दिल का अजीज बना दिया और वह मंच के महारथी बन गए. 2011 में वह अन्ना हजारे के जनलोकपाल आंदोलन से जुड़े तो उनके कदम राजनीति में भी आ गए.
राजनीति में ऐसा रहा सफर
26 नवंबर 2012 के दिन जब दिल्ली में आम आदमी पार्टी का गठन हुआ, तब वह उसकी राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य थे. इसके बाद उन्होंने अमेठी सीट से लोकसभा चुनाव भी लड़ा था, लेकिन जीत हासिल नहीं कर पाए. कुछ समय तक वह राजनीति में एक्टिव रहे, लेकिन बाद में इससे दूरी बना ली. कुमार विश्वास कहते हैं कि सियासत में मेरा खोया या पाया हो नहीं सकता. सृजन का बीज हूं मिट्टी में जाया हो नहीं सकता. वह कहते हैं कि राजनीति 10 साल या पांच साल, लेकिन कविता हजार साल.
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