एक फिल्म है हासिल. उसमें एक डायलॉग है, 'जिसे कोई बांध नहीं सकता उसे युवा कहते हैं और युवा को उल्टा कर दो तो वायु बनता है, वायु जो बहती रहती है, अगर हल्की बहे तो बेहतर और तेज हो गई तो बेहाल कर देती है.' साल 2022 में ये वायु कई बार तेज बही. इतनी की उसने सरकार और उसके सिस्टम को बेहाल कर दिया. ऐसे तो यह साल ही आंदोलनों का साल रहा, किसान से लेकर छात्र तक सब ने सड़कों पर उतर कर अपने ज़िंदा होने का सुबूत दिया.


हालांकि, इस लेख में हमारा केंद्र छात्र आंदोलन हैं तो हम उसी पर बात करेंगे. इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि साल 2022 में कितने बड़े छात्र आंदोलन हुए और उनका क्या निष्कर्ष निकला. लेकिन इससे पहले हम एक बात साफ कर दें कि इस देश की आजादी और उसका लोकतंत्र अगर किसी के कंधों पर अब तक ज़िंदाबाद है तो वो केवल भारत का छात्र है. हालांकि, गांधी के इस देश में आंदोलनों के दौरान हुई हिंसा को कभी भी स्वीकार नहीं किया गया है और आगे भी नहीं किया जाएगा.


भारत में छात्र आंदोलन का इतिहास


देश में सिर्फ साल 2022 में ही छात्र आंदोलन नहीं हुए हैं, बल्कि दशकों से छात्र सड़कों पर उतर कर सत्ताधीशों को यह एहसास दिलाते रहे हैं कि उनसे सवाल करने वाली कौमें अभी भी ज़िंदा हैं. हालांकि, अगर देश में छात्र आंदोलन के शुरुआत की बात करें तो सबसे पहला मामला 1848 का आता है, जब दादाभाई नौरोजी ने 'स्टूडेंट्स साइंटिफिक एंड हिस्टोरिक सोसाइटी' नाम के एक मंच की स्थापना की. कहते हैं ये पहला ऐसा मंच था जिसने भारत में छात्र आंदोलनों की नींव रखी. वहीं अगर पहली बार छात्रों के किसी सामुहिक हड़ताल या फिर विरोध प्रदर्शन की बात करें तो वो साल 1913 में हुआ.


ये हड़ताल किंग एडवर्ड मेडिकल कॉलेज, लाहौर में हुआ. यहां छात्रों के एक गुट ने अंग्रेजी छात्रों और भारतीयों के बीच अकादमिक भेदभाव के विरोध में हड़ताल किया था. इसके बाद देश में कई बड़े आंदोलन हुए, जिनमें छात्रों की अहम भूमिका रही. लेकिन आजादी के बाद के भारत में जब आपातकाल लगा तो जय प्रकाश नारायण (जेपी) के नेतृत्व में जिस आंदोलन ने जन्म लिया, उसने देश की दिशा और दशा दोनों बदल दी. इसी आंदोलन ने देश में ऐसे नेता पैदा किए, जिनकी तूती राज्य सरकारों से लेकर केंद्र सरकार तक में बोली. अब बात करते हैं साल 2022 के बड़े आंदोलनों पर.


RRB-NTPC रिजल्ट बनाम छात्र


इस आंदोलन को अगर साल का पहला बड़ा आंदोलन कहें तो इसमें कुछ ग़लत नहीं होगा. इस आंदोलन से लगी आग की सबसे ज्यादा लपटें बिहार में दिखीं. हालांकि, उत्तर प्रदेश के भी कई इलाकों में छात्रों ने भारी बवाल किया. प्रयागराज जैसे शहर जिन्हें छात्रों का गढ़ कहा जाता है, वहां सड़कों पर छात्रों का हुजूम दिखा. इसके साथ ही पुलिसिया कार्रवाई का वह भयावह दृश्य भी दिखा जिसमें छात्रों को उनके कमरों से निकाल-निकाल कर पीटा गया.


अब हम बताते हैं इस पूरे बवाल की जड़ क्या थी. दरअसल, रेलवे ने साल 2019 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले एनटीपीसी के माध्यम से 35,308 पदों के लिए और ग्रुप डी के लिए लगभग एक लाख तीन हज़ार पदों पर आवेदन मंगाया. इस वैकेंसी के बारे में सुनकर छात्रों के बीच खुशी की लहर दौड़ गई, उन्होंने जम कर फॉर्म भरा और परीक्षा की तैयारी की. साल 2021 में इसकी परीक्षा हुई और साल 2022 में इसका रिजल्ट घोषित कर दिया गया.


अब छात्रों का इस पर कहना था कि जब इस भर्ती के लिए नोटिफ़िकेशन जारी किया गया था तो उसमें यह बात लिखी गई थी कि रेलवे बोर्ड CBT-1 (NTPC) में 20 गुना रिज़ल्ट देगा, लेकिन असलियत में ऐसा नहीं हुआ. रेलवे ने एक ही छात्र का कई पदों के लिए चयन कर लिया. यानि जो छात्र ग्रेजुएट है, उसे भी 12वीं पास के लिए निकले पद के लिए भी चुन लिया गया. अब छात्रों की मांग थी कि रेलवे को एक पद के लिए एक ही छात्र को चुनना चाहिए था. इसके साथ ही उनकी मांग थी कि 12वीं पास भर्ती के लिए और ग्रेजुएशन के लिए अलग-अलग परीक्षाएं होनी चाहिए. इसे लेकर बिहार और यूपी में जमकर आंदोलन हुआ, कई ट्रेनों में आग लगा दी गई और कई रेलवे स्टेशन तहस-नहस कर दिए गए थे.


अग्निपथ योजना बनाम छात्र


यह साल का सबसे बड़ा आंदोलन था. जून की चिलचिलाती गर्मी में ऐसे ही पारा आसमान पर रहता है. लेकिन इसी दौरान केंद्र सरकार के एक फैसले ने देश में माहौल को और गर्म कर दिया. केंद्र की मोदी सरकार ने जून में तीनो सेनाओं (आर्मी, एयर फोर्स और नेवी) में भर्ती के लिए एक योजना लॉन्च की, जिसे अग्निपथ योजना कहा गया. इस योजना के तहत परीक्षा के बाद सेना में छत्रों की भर्ती महज चार साल के लिए ही होनी थी. देश की सेना में पूरे जीवन काम करने का सपना देखने वाले युवाओं को जैसे ही इस योजना की जानकारी लगी, उनका गुस्सा फूट पड़ा. ऐसा फूटा की देश में कई दिनों तक कर्फ्यू जैसे हाल रहे.


कई शहरों में आगजनी हुई, ट्रेनें जला दी गईं, जिलेवार तरीके से बीजेपी के दफ्तरों में तोड़फोड़ हुई और सोशल मीडिया पर इसे लेकर हैशटैग महीनों ट्रेंड होते रहे. इस पूरे आंदोलन का निष्कर्ष ये निकला कि इसमें छात्रों को कुछ और सहूलियतें दी गईं और कई राज्य सरकारों ने आगे आकर कहा कि जो लोग भी चार साल सेना में बिताएंगे, उन्हें हमारे यहां प्रायोरिटी पर नौकरी दी जाएगी. अब इस योजना के तहत भर्ती भी शुरु हो गई है और छात्र इसमें भाग भी ले रहे हैं.


फीस वृद्धि बनाम छात्र


इलाहाबाद यूनिवर्सिटी (AU) और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) में इस साल फीस वृद्धि की गई. ये फीस वृद्धि कई गुना थी, जिसे लेकर छात्र आंदोलित हो गए. बीएचयू में भले ही ये आंदोलन छोटा रहा, लेकिन इलाबाहाद विश्वविद्यालय में ये आंदोलन लंबा चला. छात्रों ने पूरा शहर जाम कर दिया. सबसे बड़ी बात रही कि इस आंदोलन की आवाज देश की संसद से लेकर राज्य के विधानसभा में भी उठी.


माहौल ऐसा हो गया कि पूरब का ऑक्सफोर्ड कहे जाने वाले विश्वविद्यालय को छावनी में तब्दील कर दिया गया और चारों तरफ लाल बूटों का पहरा हो गया. ये आंदोलन अभी भी चल रहा है, छात्र अभी भी अनशन पर बैठे हैं. आंदोलित छात्रों का कहना है कि आज जितनी फीस बढ़ाई गई है, उसे एक गरीब परिवार से आने वाला छात्र नहीं भर सकता. इसे कम किया जाए ताकि समाज का हर वर्ग अच्छी शिक्षा हासिल कर सके, जिसका अधिकार उसे देश का संविधान देता है.


UPSC छात्र बनाम सरकार


संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) जिसकी परीक्षा पास करने के बाद एक छात्र आपके जिले का कलेक्टर बनता है, उस पर भी साल 2022 में विवाद हुआ. दरअसल, यूपीएससी की तैयारी करने वाले छात्रों की मांग है कि कोरोना महामारी के चलते उनकी पढ़ाई पूरी नहीं हो सकी और उनके हाथ से इस परीक्षा में भाग लेने का मौका निकल गया. अब वह सरकार से मांग कर रहे हैं कि जैसे एसएससी जीडी और अग्निवीर उम्मीदवारों को अतिरिक्त प्रयास करने का मौका दिया गया, वैसे ही उन्हें भी यूपीएससी के लिए एक्सट्रा अटेंप्ट दिए जाएं. इस मांग को लेकर दिल्ली में बड़ा आंदोलन भी हुआ, जिसके बाद छात्रों पर पुलिस की लाठियां भी चलीं और उन्हें गिरफ्तार भी किया गया.


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