Agnipath Scheme Needs To Change: साल 2022 में अग्निपथ स्कीम को मोदी सरकार ने मंजूरी दी थी और उसी साल सितंबर के महीने से ये लागू भी हो गई. इसके तहत सेना की तीनों फोर्स थल, जल और वायु सेना के लिए कैंडिडेट्स का सेलेक्शन होता है. अग्निपथ स्कीम के तहत होने वाले इस चयन के कुछ नियम हैं और सर्विस के भी. ये आम भर्ती से कई मायने में अलग है. हालांकि, जब से इस स्कीम को लागू किया गया है, तब से कई बार इस पर सवाल उठे हैं. आइए जानते हैं कि एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इस स्कीम में किस तरह के सुधार की गुंजाइश है.
पहले थोड़ा इस स्कीम के बारे में
अग्निवीर योजना का मकसद ज्यादा से ज्यादा युवाओं को सेना में भर्ती करना है. इसके लिए हर साल तीनों सेनाओं में इनकी भर्ती होती है और इन्हें अग्निवीर के नाम से जानते हैं. ये चार साल की अवधि के लिए चुने जाते हैं और समय पूरा होने पर इनमें से केवल 25 प्रतिशत को ही परमानेंट कमीशन (15 साल तक की नौकरी) में जगह मिलती है. बाकी 75 प्रतिशत अपनी रुचि के हिसाब से जिस एरिया में चाहें करियर बना सकते हैं.
इस दौरान इन्हें सरकारी नियमों के मुताबिक सैलरी मिलती है. अगर सर्विस के दौरान अग्निवीर का निधन होता है तो फैमिली को एक करोड़ रुपये देने का प्रावधान है, जिसमें सेवा निधि पैकेज भी शामिल है. वहीं, डिसएबिलिटी होने पर 44 लाख रुपये देने का प्रावधान है. पेंशन केवल उन्हीं 25 पर्सेंट को मिलती है जो परमानेंट कमीशन में सेलेक्ट होते हैं.
खामियां और सुधार की गुंजाइश
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, सेना में चार साल का समय किसी भी युवक या युवती के लिए बहुत कम समय है. इतने समय में ट्रेनिंग लेकर फील्ड पर उतरना और कुछ ही समय में कार्यकाल खत्म हो जाना कई नजरिए से प्रासंगिक नहीं लगता. जानते हैं इस स्कीम की और क्या खामियां हैं.
- एक्सपर्ट्स का मानना है कि थल सेना के लिए फिर भी चार साल का कार्यकाल ठीक है, लेकिन वायु सेना और जल सेना के लिए यह कतई ठीक नहीं.
- कायदे से होना यह चाहिए कि इस स्कीम के तहत सेलेक्ट हुए 75 प्रतिशत कैंडिडेट्स को परमानेंट कमीशन में जगह मिलनी चाहिए, जबकि बाकी 25 प्रतिशत को उनके प्रदर्शन के आधार पर रिटायरमेंट दिया जाना चाहिए.
- एक अग्निवीर को केवल 6 महीने की ट्रेनिंग के साथ सेना में भर्ती किया जाता है. इतने में कैंडिडेट ठीक से अपनी ड्यूटी के लिए तैयार नहीं हो पाता. खासतौर पर ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले बच्चे, जिनमें न जाने कितने कुपोषित होते हैं.
- उम्र सीमा, शिक्षा की पात्रता वगैरह को देखते हुए यह उम्मीद काफी कम लगती है कि ये कैंडिडेट पहले से बहुत ट्रेंड होते हैं.
- एक्सपर्ट्स का यह भी कहना है कि थल सेना में तकनीकी चीजें कम होती हैं, लेकिन जल और वायु सेना में इतने कम समय में कैंडिडेट क्या सीख सकता है और सेना के लिए क्या योगदान दे सकता है? यह बड़ा सवाल है.
- जल और वायु सेना का कार्यभार पूरी तरह समझने और अच्छी तरह संभालने के लिए जरूरी है कि कैंडिडेट ने कम से कम 5 या 6 साल काम किया हो. उसे कॉम्पलेक्स मशीनरी से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स और खतरनाक हथियारों के बारे में अच्छी नॉलेज हो.
- इस स्कीम को अगर चार साल की जगह कम से कम सात साल का कर दिया जाए तो फिर भी कुछ फायदे की गुंजाइश दिखती है. चार साल के कार्यकाल में इन कैंडिडेट्स से ज्यादा योगदान की उम्मीद बेमानी लगती है.
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