Aligarh Muslim University: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का ऐतिहासिक महत्व, शिक्षा में योगदान और वैश्विक पहचान इसे एक ऐसे संस्थान के रूप में स्थापित करते हैं जो न केवल छात्रों को ज्ञान प्रदान करता है, बल्कि समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए प्रेरित भी करता है.


अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय दुनियाभर में अपनी अलग ही पहचान रखता है. आज सुप्रीम कोर्ट यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जा को लेकर अहम फैसला सुनाएगा. फैसले के बाद पता चलेगा कि संस्थान के पास अल्पसंख्यक दर्जा रहेगा या फिर खत्म हो जाएगा. प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 7 न्यायाधीशों की संविधान पीठ इस मुद्दे पर अपना फैसला सुनाएगी.  हालांकि, संविधान पीठ की तरफ से 1 फरवरी को फैसला सुरक्षित रखा था. लेकिन क्या आप इस यूनिवर्सिटी के इतिहास के बारे में जानते हैं? अगर नहीं तो आज हम आपको बताते हैं.


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कब मिला केंद्रीय  विश्वविद्यालय का दर्जा


अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय भारत की राजधानी नई दिल्ली से करीब 150 से 160 किलोमीटर दूर यूपी के अलीगढ़ में स्थित है. ये देश की प्रमुख सेंट्रल यूनिवर्सिटी में शामिल है. जिसकी स्थापना साल 1920 में सर सैयद अहमद खान ने की और साल 1921 में इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा प्राप्त हुआ. इसकी स्थापना कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की तर्ज पर हुई थी. उस वक्त इस संस्थान को मुस्लिम एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज के रूप में जाना जाता था. लेकिन आज के वक्त यहां से पढ़े हुए स्टूडेंट्स देश-विदेश में अपना परचम लहरा रहे हैं.


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कब रखी गई थी नींव?


रिपोर्ट्स के अनुसार सर सैयद अहमद खान ने एक आधुनिक शिक्षण संस्थान की आवश्यकता को महसूस करते हुए एएमयू की स्थापना की थी. उन्होंने सबसे पहले 1875 में मदरसा ए तुलुम के रूप में इसकी नींव रखी, जो बाद में 1877 में एंग्लो ओरिएंटल कॉलेज बना और साल 1920 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का रूप ले लिया. सर सैयद का सपना एक ऐसा संस्थान बनाना था जो देश को तरक्की के मार्ग पर ले जाए और राष्ट्र निर्माण में योगदान दे.


देश का नाम किया रोशन


बड़ी संख्या में छात्रों का सपना अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से पढ़ने का होता है लेकिन चंद ही अपने इस सपने को पूरा कर पाते हैं. यहां से पढ़कर निकलने वाले कई छात्र वैज्ञानिक और विश्व स्तर के नेता भी बने हैं.


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