अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के चिकित्सकों की एक टीम ने 25 साल के चंद्रशेखर की कटी हुई कलाई को सफलतापूर्वक जोड़ दिया है. जिससे यह मामला दुर्लभ सर्जरी के मामलों की सूची में शामिल हो गया है. मरीज को छुट्टी दे दी गई है.


चंद्रशेखर ड्रिलिंग कर रहे थे तभी उनका हाथ ड्रिलिंग मशीन की चपेट में आ गया. परिजनों द्वारा उसे जेएनएमसी में भर्ती कराया गया. जहां डॉक्टर्स किसी तरह पतली चमड़ी से लटकती उसकी कलाई को जोड़ने में कामयाब रहे. ​​प्लास्टिक सर्जरी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर अरशद हफीज खान ने बताया कि ट्रॉमा सेंटर पहुंचने से पहले मरीज का काफी खून बह चुका था. हम उसे तुरंत आपातकालीन ऑपरेशन थियेटर में ले गए. छह घंटे की लंबी सर्जरी में रक्त की आपूर्ति बहाल करने और कटी हुई कलाई के टेंडन, नसों और हड्डियों को ठीक करने से पूर्व उन्हें पहले रक्त और फ्लुइड्स की आपूर्ति के साथ उन्हें जीवित रखने का प्रयास किया गया.


डॉक्टर शेख सरफराज अली ने कहा कि सर्जरी में वास्तविक समस्या रक्त की आपूर्ति को कटे हुए हिस्से तक बनाए रखना था. हमने शल्य चिकित्सा द्वारा टेंडन और नसों को ठीक किया और प्रमुख नसों को दोबारा जोड़ा. सर्जरी के दौरान उन्हें अधिक यूनिट रक्त देना पड़ा. वरिष्ठ प्लास्टिक और पुनर्निर्माण सर्जन प्रोफेसर मोहम्मद यासीन ने कहा कि ऐसे मामलों में अंग का उचित संरक्षण और रोगी को जल्द से जल्द अस्पताल ले जाना सफल ट्रांसप्लांटेशन की कुंजी है.


सर्जन प्रोफेसर इमरान अहमद ने कहा कि इस प्रकार की सर्जरी की सफलता काफी हद तक फॉलो-अप फिजियोथेरेपी और एक अच्छी तरह से डिजाइन किए गए पोस्ट ऑपरेटिव डायनेमिक रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम पर निर्भर करती है. माइक्रो वैस्कुलर सर्जन डॉ मोहम्मद फहद खुर्रम ने कहा कि अंग ट्रांसप्लांटेशन एक मुश्किल और कठिन ऑपरेशन है, लेकिन माइक्रो-सर्जरी की प्रगति के साथ, रक्त की आपूर्ति बहाल करके और टेंडन, तंत्रिकाओं और हड्डियों की मरम्मत करके शरीर के पूरी तरह से कटे हुए अंगों को फिर से लगाना संभव हो रहा है.


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