Bihar Board Matric Result: बिहार बोर्ड मैट्रिक रिजल्ट किसी भी समय जारी हो सकता है. रिजल्ट आने के बाद परिणाम जो होंगे उनका सामना तो स्टूडेंट्स को करना ही है पर रिजल्ट आने के पहले उसके आने का इंतजार और नर्वसनेस एक बड़ा मुद्दा है जिस पर काबू पाना बहुत जरूरी है. न जाने कितने ऐसे स्टूडेंट्स होंगे जो रिजल्ट आने की खबर के बाद से ठीक से सोये नहीं होंगे, कितनों ने खुद को सबसे अलग-थलग कर लिया होगा और रिजल्ट के बाद ही सामान्य हो पायेंगे. दरअसल एग्जाम फोबिया की तरह शायद रिजल्ट फोबिया भी स्वीकार कर लेना चाहिये. सवाल यह है कि इससे कैसे बचें. ऐसे में पैरेंट्स और फैमिली चाहें तो सेवियर बन सकते हैं. बच्चे के इस डर को अपने साथ और हौंसले से कम कर सकते हैं. आइये जानते हैं कैसे


हर हाल में आप उनके साथ हैं –


बच्चे को भरोसा दिलायें कि परिणाम जो भी हो आप हर हाल में उसके साथ हैं. उसे समझायें कि पेपर हो चुके हैं, जो परिणाम आना था वो लगभग तैयार है और घबराहट या चिंता उसे बदल नहीं देगी. हां पर रिजल्ट को लेकर उनका नजरिया जरूर आगे का जीवन बदल सकता है. अपने बच्चों से बात करें और उन्हें यकीन दिलायें की परिणाम कैसा भी हो इससे उन्हें बहुत फर्क नहीं पड़ता, फर्क इस बात से पड़ता है कि वे इसको किस प्रकार लेते हैं. हर असफलता, सफलता की नयी कहानी लिख सकती है.


देखें बच्चा सीवियर एनजाइटी में तो नहीं –


एग्जाम या रिजल्ट का थोड़ा बहुत डर या घबराहट तो हर किसी में होती है पर पैरेंट्स को ध्यान यह रखना है कि कहीं उनका बच्चा सामान्य एनजाइटी लेवल को क्रॉस करके सीवियर एनजाइटी तो नहीं सह रहा. यूं तो एनजाइटी कैसी भी अच्छी नहीं होती पर अत्यंत मानसिक पीड़ा बच्चे को रोगी बना सकती है. अगर आपका बच्चा लगातार नर्वस है, उसकी बॉडी लैंग्वेज एकदम बदली है, खाना-पीना कुछ नहीं खा रहा और आपसे नहीं संभल रहा तो किसी अच्छे साइकोलॉजिल्ट की मदद तुरंत लें.


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परिणामों से नहीं बनता-बिगड़ता भविष्य –


अपने बच्चे को यह भरोसा दिलायें कि एक परीक्षा में कम या खराब अंक उसके भविष्य का निर्धारण नहीं करेंगे. उसके पास आगे बहुत से मौके आयेंगे जिनका लाभ वो उठा सकता है. बोर्ड एग्जाम और रिजल्ट को हौव्वा न बनायें. उसे ऐसे सफल लोगों की कहानियां सुनायें जिन्होंने एक दो बार फेल होकर भी जीवन में बहुत कुछ बड़ा एचीव किया. एकेडमिक्स जरूरी है पर दुनिया इसके आगे भी है. अगर परिणामों से संतुष्ट नहीं हैं तो निराश न हों अगली बार और मेहनत करें. एक अभिभावक के तौर पर बच्चे को बतायें कि वह उनके लिये कितना जरूरी है और उसकी मेंटल हेल्थ भी. एक और बात इस समय ओवर एक्टिव हो जाने वाले रिश्तेदार और पड़ोसियों से बच्चे को दूर रखें.


तुलना कतई न करें –


इस बारे में बात करते हुये क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट अमिता बाजपेयी कहती हैं कि किसी और से बच्चे की तुलना न करें, सबसे ज्यादा बच्चों को यह द्रवित करता है. आपके बच्चे जब आपकी तुलना दूसरे मां-बाप से करते हैं तो आप यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि आप ऐसे ही हैं, ऐसे ही रहेंगे. तो स्वीकार करें कि आपका बच्चा भी ऐसा ही है,


वह 500 एमएल क्षमता का ग्लास है उससे 1000 एमएल पानी भरने की कोशिश न करें. घर का माहौल हल्का और खुशनुमा बनायें, कोरोना ने ऐसे ही बहुत नीरसता फैला दी है. बच्चे के एक बोर्ड एग्जाम के रिजल्ट को उसी जिंदगी के रिजल्ट के तौर पर न देखें. याद रहे एक अभिभावक के तौर पर आपकी भूमिका बहुत अहम है, इसे जिम्मेदारी से निभायें.


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