पोस्ट स्टडी वर्क परमिट में कनाडा कर रहा बड़ा बदलाव, भारतीय छात्रों पर क्या पड़ेगा असर?
Canada Post Study Permit: कनाडा पोस्ट स्टडी वर्क परमिट स्कीम में बड़े बदलाव करने की योजना बना रहा है. इससे भारतीय छात्रों पर किस तरह का प्रभाव पड़ेगा, उनकी मुश्किलें आसान होंगी या बढ़ेंगी? जानते हैं.
Canada’s Post Study Work Permit Scheme To Change Soon: पढ़ाई के बाद मिलने वाली वर्क परमिट स्कीम में कनाडा कई बड़े बदलाव करने की योजना बना रहा है. इससे यहां बसे विदेशी छात्रों खासकर इंडियन स्टूडेंट्स को खासी परेशानी हो सकती है. कनाडा नियमों को सख्त बनाने जा रहा है जिसके बाद यहां हर किसी के लिए वर्क परमिट पाना आसान नहीं होगा. ये बदलाव क्यों किए जा रहे हैं और इनसे भारतीय छात्रों पर क्या असर पड़ेगा, जानते हैं?
क्या होता है PGWP?
आगे बढ़ने से पहले ये जान लेते हैं कि पीजीडब्ल्यूपी होता क्या है. इसका अर्थ है पोस्ट ग्रेजुएशन वर्क परमिट. यहां से पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने वाले छात्र इसके लिए अप्लाई करते हैं ताकि पढ़ाई पूरी करने के बाद वे संबंधित क्षेत्र में ट्रेनिंग ले सकें. इस एक्सपीरियंस का लाभ उन्हें आगे करियर में मिलता है.
क्या है कनाडा की योजना
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक कनाडा की योजना है कि वर्तमान में पीजीडब्लयूपी स्कीम जो सभी इंटरनेशनल स्टूडेंट्स को मिलती है उसे केवल सीमित स्टूडेंट्स को ही उपलब्ध कराया जाए. केवल उन्हीं क्षेत्रों में कैंडिडेट्स को वर्क परमिट स्कीम का लाभ उठाने का मौका मिले जिनमें वर्कर्स की शॉर्टेज है. इससे कैंडिडेट भी अपनी फील्ड में एक्सपीरियंस ले पाएगा और उन्हें जिस फील्ड में वर्कर नहीं मिल रहे हैं, वे मिल सकेंगे.
कब से हो सकता है ये नियम लागू
अभी इस नियम पर कनाडा विचार कर रहा है और संबंधित विभाग से विचार-विमर्श करने के बाद इस संबंध में फैसला लिया जा सकता है. इस बारे में इमिग्रेशन मिनिस्टर को कुछ दिनों में सलाह दी जाएगी और मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जनवरी 2025 से ये बदलाव लागू किए जा सकते हैं.
इतनी हो सकती है ड्यूरेशन
पोस्ट ग्रेजुएशन वर्क परमिट मिलने की अवधि कई मुद्दों पर निर्भर करेगी. इनमें से एक ये भी है कि कैंडिडेट के स्टडी प्रोग्राम की लेंथ कितनी है. इसके हिसाब से ये 8 महीने से लेकर 3 साल तक हो सकती है. इस नियम के बाद उन भारतीय छात्रों को परेशानी हो सकती है जो उन कोर्सेस में इनरोल हैं जिनमें कनाडा के पास वर्कर्स की कमी नहीं है.
इन कैंडिडेट्स को नहीं मिलेगी सुविधा
मोटी तौर पर कहें तो इस स्कीम को री-एलाइन करके लेबर मार्केट की जरूरत को पूरा करने पर जोर दिया जा रहा है. ऐसे में उन कैंडिडेट्स को वर्क परमिट मिलने में समस्या होगी जो ऐसी फील्ड से नहीं हैं जहां वर्कर्स की कमी हो. कुल मिलाकर कनाडा इस सुविधा को कुछ इस तरह बांटना चाहता है जिससे उनकी लेबर मार्केट को फायदा हो और जहां कर्मचारियों की कमी है, उसे पूरा किया जा सके.
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