मैनेजमेंट की पढ़ाई के लिए एमबीए करें या पीजीडीएम, सवाल का यहां मिलेगा जवाब
कहने को एमबीए और पीजीडीएम एक ही विषय पर आधारित ज्ञान प्रदान करते हैं, लेकिन दोनों ही इसके प्रति अलग-अलग दृष्टिकोण रखते हैं. दोनों कोर्स के बीच बहुत अंतर होता है.
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हर छात्र का सपना होता है कि वह ग्रेजुएशन के बाद अच्छी सैलरी और बेहतरीन करियर पा सके. इसके लिए अधिकतर छात्र एमबीए या पीजीडीएम को अपनी पसंद बनाते हैं. कहने को दोनों ही प्रबंधन और व्यवसाय से जुड़े हैं लेकिन दोनों का ही तरीका अलग है. विषय एक होने की वजह से ही ज्यादातर इन दोनों के बीच अंतर नहीं कर पाते या यूं कहें तो दोनों को लेकर कंफ्यूज रहते हैं. आइये आज हम आपको बताते हैं कि MBA और PGDM में क्या अंतर होता है और दोनों में से किसके क्या फायदे-क्या नुकसान हैं.
पाठ्यक्रम का स्वरूप
एमबीए एक डिग्री कोर्स है जो यूनिवर्सिटी कराती हैं. ये कोर्स यूजीसी से संबद्ध होता है. वहीं, पीजीडीएम एक डिप्लोमा कोर्स है जो निजी व्यावसायिक संस्थानों द्वारा प्रदान किया जाता है. इसी तरह एमबीए में विषय के प्रति सैद्धांतिक दृष्टिकोण ज्यादा होता है जबकि पीजीडीएम अधिक व्यावहारिक दृष्टिकोण प्रदान करता है.
पाठ्यक्रम में होती है भिन्नता
एमबीए का पाठ्यक्रम अधिकतर विश्वविद्यालय द्वारा निर्धारित किया जाता है, इसलिए एक यूनिवर्सिटी से संबद्ध विभिन्न कॉलेजों में पाठ्यक्रम एक ही होता है. हालांकि, पीजीडीएम में पाठ्यक्रम अलग-अलग संस्थानों/कॉलेजों द्वारा तय किए जाते हैं. ऐसे में यह हर कॉलेज में अलग होता है.
फीस में होता है काफी अंतर
एमबीए की फीस पीजीडीएम की तुलना में कम होती है. विश्वविद्यालयों को सरकार से सहायता मिलती है इसलिए छात्रों को कम फीस वहन करनी पड़ती है. निजी कॉलेज जरूर एमबीए कराने के लिए अधिक शुल्क लेते हैं. वहीं, पीजीडीएम के कोर्स की फीस काफी ज्यादा होती है. जिन कॉलेजों में कैंपस प्लेसमेंट अच्छे पैकेज पर होता है, वहां तो फीस सामान्य से दोगुना तक होती है.
पाठ्यक्रम की अवधि
दोनों ही तरह के पाठ्यक्रम 2 वर्ष के होते हैं. हालांकि एमबीए सेमेस्टर पैटर्न का पालन करता है, जबकि पीजीडीएम त्रैमासिक पैटर्न का पालन करता है. साथ ही पीजीडीएम के कोर्स ज्यादा अपडेटेड होेते हैं जबकि एमबीए में लंबे समय बाद बदलाव होता है.
कैरियर के अवसर
कोई भी व्यक्ति एमबीए करने के बाद एचआर मैनेजर, बिजनेस एनालिस्ट, मार्केटिंग मैनेजर, फाइनेंस एडवाइजर, इन्वेस्टमेंट बैंकर आदि के रूप में काम कर सकता है. वहीं, पीजीडीएम कोर्स पूरा करने वाले को प्रोजेक्ट मैनेजर, डेटा साइंटिस्ट, ऑडिटर, टैक्स स्पेशलिस्ट, कंसल्टेंट आदि के रूप में काम करने का मौका मिलता है.
पीजीडीएम वाले को मिलता है ज्यादा वेतन
आमतौर पर PGDM डिग्री वाले छात्रों को MBA वाले छात्रों की तुलना में अधिक वेतन मिलता है. MBA करने वाले के लिए शुरुआती वेतन 7 से 10 लाख रुपये प्रति वर्ष का हो सकता है. वहीं, PGDM करने वाले के लिए औसत शुरुआती वेतन 12 से 15 लाख रुपये प्रति वर्ष रहता है. कई बार यह संस्थान पर भी निर्भर करता है.
प्रवेश के तरीकों में अंतर
दोनों ही प्रोग्राम CAT, MAT, ZAT आदि टेस्ट के स्कोर स्वीकार करते हैं. MBA की पेशकश करने वाले विश्वविद्यालय राज्य स्तरीय परीक्षाओं के स्कोर भी स्वीकार करते हैं. जबकि PGDM कराने वाले संस्थान में कोई विशिष्ट कट-ऑफ नहीं है, लेकिन चयन टेस्ट स्कोर के अलावा पिछले शैक्षणिक प्रदर्शन और उपलब्धियों जैसे कारक जरूर देखते जाते हैं.
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