बुन्देलखंड के एक साधारण मध्यमवर्गीय किसान परिवार से आने वाले बी. सिंह के संघर्षों की एक लंबी मगर बेहद दिलचस्प कहानी है. उन्होंने बड़े सपने देखे और उन सपनों को सच करने के लिए दिन-रात एक कर दिया. IIT और IES जैसे कड़े इम्तिहान में सफ़लता के झण्डे गाड़े. ख़ुद बहुत क़रीबी अंतर से IAS बनने से चूक गए मगर जिसे पढ़ाया उसने ऑल इंडिया टॉप-10 में अपनी जगह बनाई. बी. सिंह समझ गए कि नियति ने उनके लिए IAS बनना नहीं बल्कि IAS बनाना लिख रखा है. उनकी ये सोच बिल्कुल सही साबित हुई. पिछले 5 वर्षों में उनके संस्थान NEXT IAS से 1,500 से भी ज़्यादा छात्र UPSC सिविल सर्विसेज़ एग्ज़ाम में सेलेक्ट हो चुके हैं.


अंग्रेज़ी में कमजोर पकड़
बुंदेलीभाषी समाज में पले-बढ़े बी. सिंह की इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई भी हिंदी मीडियम में हुई. इस कारण अंग्रेज़ी पर उनकी पकड़ कमज़ोर रही. IIT जाने और इंजीनियर बनने की इच्छा रखने वाले बी. सिंह की राह में अंग्रेज़ी एक ऊंची चट्टान की तरह रास्ता रोके खड़ी थी. बी. सिंह बताते हैं कि, “घर से स्कूल तीन किलोमीटर दूर था. पैदल छः किलोमीटर आना-जाना होता था. स्कूल में बैठने के लिए बेंच तक नहीं थीं, सो टाटपट्टी पर बैठकर पढ़ते थे. गांव में बिजली का नाम-ओ-निशान नहीं था. ढिबरी और लालटेन की धीमी रोशनी में पढ़ना होता था. नतीजे ऐसे आते थे कि आठवीं की बोर्ड परीक्षा में पूरे स्कूल से केवल दो बच्चे पास हुए.” उनमें से एक बी. सिंह थे. 


IIT बीएचयू में सिविल इंजीनियरिंग
12वीं के बाद IIT में पढ़ने के अपने सपने को पूरा करने की चाह में वो तमिलनाडु पहुंचे. वहां  पहुंचकर उन्हें लगा मानो किसी दूसरी दुनिया में आ गए हों. चेन्नई में पढ़ाई से लेकर सामान्य बातचीत तक ज़्यादातर सब अंग्रेज़ी में ही था. जैसे-तैसे दो महीने काटे और फिर थक-हारकर  गांव लौट आए. गांव लौटने के बाद बी. सिंह को लगा जैसे उनका सपना उनसे छीन लिया गया हो. कई दिन बेचैनी में गुज़ारने के बाद उन्होंने ख़ुद से वादा किया कि अब चाहे जितनी मेहनत करनी पड़े, IIT पहुंचे बग़ैर दम नहीं लेंगे. मज़बूत इरादा कर चेन्नई वापस लौटे बी. सिंह ने पहले अंग्रेज़ी भाषा पर पकड़ बनाई फिर इंजीनियरिंग की तैयारी की. पढ़ाई को लेकर जुनून इतना कि इम्तिहान के कुछ महीने रह जाने पर कभी तीन-चार घण्टे से ज़्यादा सोए नहीं. आख़िरकार मेहनत रंग लाई और अपने पहले प्रयास में ही सफल होकर उन्होंने IIT बीएचयू में सिविल इंजीनियरिंग में दाख़िला लिया. 


ऊंचे पद पर प्लेसमेंट
इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के साथ ही बी. सिंह का एक सरकारी कम्पनी में ऊंचे पद पर प्लेसमेंट हो गया. उस ज़माने में किसी भी मध्यमवर्गीय परिवार से आने वाले छात्र के लिए ये बहुत बड़ी उपलब्धि थी. लेकिन बी. सिंह का सपना कुछ बड़ा करने का था इसलिए वो यहीं नहीं रुके और IES अधिकारी बनने का लक्ष्य बनाया. घर में किसी को बिना बताए उन्होंने नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया और छोटी सी जमापूंजी के साथ दिल्ली आकर तैयारी में जुट गए. अभी तैयारी शुरू ही हुई थी कि वक़्त ने एक बार फिर उनका इम्तिहान लिया. दिल्ली में बस के सफ़र के दौरान उनकी सारी जमापूंजी चोरी हो गई. हाथ में जो बचा उससे कुछ हफ़्ते तो क्या कुछ दिन भी काटने मुश्किल थे. सो रिस्क लेकर उन पैसों से कुछ ट्यूशन क्लास के कुछ पोस्टर बनवाए और ख़ुद अपने हाथों से दिल्ली की सड़कों से सटी दीवारों पर चिपकाया. 2001 में महज़ सात स्टूडेंट्स के साथ कुछ इस तरह मजबूरी में शुरू हुए एक ट्यूशन सेंटर से आज दिल्ली, लखनऊ, भोपाल, जयपुर समेत भारत के कई शहरों में फैले Made Easy ग्रुप की शुरुआत हुई. इसके बाद जो कुछ भी घटा वो अपने आप में एक इतिहास है.


पहले ही प्रयास में 72वीं रैंक
अपने पहले ही प्रयास में 72वीं रैंक हासिल कर IES अधिकारी बनने वाले बी. सिंह आज Made Easy एवं Next IAS के संस्थापक, चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर हैं और अपने इन दोनों संस्थानों  के जरिये सैकड़ों-हज़ारों छात्रों को GATE, इंजीनियरिंग सर्विसेज़ और IAS जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं में सफ़ल होने की राह दिखाते हैं. बी. सिंह के मार्गदर्शन में ओझा सर जैसे अनुभवी शिक्षकों की टीम- छात्रों को और UPSC सिविल सर्विसेज जैसी मुश्किल परीक्षाओं की तैयारी- इतनी सरल भाषा और जाँची-परखी टेक्निक से करवाती है कि किसी भी शैक्षिक अथवा सामाजिक बैकग्राउंड से आने वाले छात्र इसे आसानी से समझ सकें और एग्ज़ाम क्रैक कर सकें. अभी हाल ही में दिल्ली पुलिस के पूर्व कमिश्नर और UPSC के पूर्व मेंबर भीम सेन बस्सी भी Next IAS के साथ चीफ एडवाइजर के तौर पर जुड़े हैं.


शिक्षा एवं सामाजिक क्षेत्र में कई उल्लेखनीय कार्य करने के लिए बी. सिंह को कई राष्ट्रीय स्तर के सम्मानों से नवाज़ा जा चुका है. जिसमें भारत के उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू द्वारा दिया गया ‘चैम्पियंस ऑफ़ चेंज अवॉर्ड’ एवं एक नेशनल न्यूज़ चैनल द्वारा दिया गया ‘क्वालिटी इन एजूकेशन अवॉर्ड’ आदि प्रमुख हैं.


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