इंडियन आर्मी की ऐसी रेजिमेंट…जिससे मौत भी कांपती है, खुखरी से काटते हैं दुश्मन का गला, पढ़ें इनकी कहानी
भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट अपनी बहादुरी, अनुशासन और युद्ध कौशल के लिए जानी जाती है. इसमें नेपाली मूल के और भारतीय सैनिक भी शामिल हैं.
विश्व की बेहतरीन फौजों में शुमार है इंडियन आर्मी. इसमें कई रेजिमेंट और कुई टुकड़ियां है, जिनमें सबसे विध्वंसक व आक्रामक रेजिमेंट के रूप में है "गोरखा रेजिमेंट. गोरखा रेजिमेंट अपनी बहादुरी, अनुशासन और युद्ध कौशल के लिए पूरी दुनिया में पहचानी जाती है.
इंडियन आर्मी की गोरखा रेजिमेंट में नेपाल के मूल निवासी और भारत के दोनों सैनिक हैं. गोरखा दुश्मनों के लिए मौत का दूसरा नाम है. भारत के पहले फील्ड मार्शल एसएचएफ जे मानेकशॉ ने भी एक बार कहा था, कि अगर कोई तुमसे कहे कि वह कभी नहीं डरता…तो वह झूठा है या वह गोरखा है.
"गोरखा रेजिमेंट" की स्थापना हिमाचल प्रदेश के सुबाथू में ब्रिटिश सरकार ने 24 अप्रैल को सन् 1815 को गोरखा राइफल्स बटालियन के साथ की थी. इस बटालियन को अब गोरखा राइफल्स के नाम से जाना जाता है, जो आज भारतीय सेना का एक महत्वपूर्ण सैन्य-दल है. यह एक गोरखा इन्फेंट्री रेजिमेंट है, जिसमें 70 प्रतिशत नेपाली मूल के गोरखा सैनिक मुख्य रूप से शामिल हैं.
ऐसे हुआ था गठन
मूल रूप से वर्ष 1815 में ब्रिटिश भारतीय सेना के हिस्से के रूप में इसका गठन किया गया था. लेकिन जिसने बाद में, प्रथम किंग जॉर्ज पंचम की खुद की गोरखा राइफल्स (मलऊन रेजिमेंट) के शीर्षक को अपना लिया गया. वर्ष 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, इसे भारतीय सेना को हस्तांतरित कर दिया गया. सेना और 1950 में जब भारत एक गणराज्य बन गया, तो इसका नाम गोरखा राइफल्स (मलऊन रेजिमेंट) रखा गया.
कहा जाता है दुश्मनों काल
वर्तमान समय में यह भारतीय जवानों की ऐसी बटालियन है, जिससे देश के दुश्मन इतना घबराते हैं कि वो कभी इस रेजिमेंट के सामने नहीं आना चाहते. गोरखा बटालियन को देश की सबसे खतरनाक रेजिमेंट कहा जाता है, क्योंकि ये देश के किसी भी दुश्मन पर रहम नहीं करते हैं और उन्हें निर्ममता से मौत के घाट उतार देते हैं और यही वजह है कि दुश्मन इनका सामना नहीं करना चाहते हैं. इनको हमेशा दुश्मनों काल कहा जाता है.
बेमिसाल बहादुरी के लिए हैं विख्यात
गोरखा रेजिमेंट ने शुरू से ही अपनी बहादुरी का परचम लहराया और अंग्रेजों के अहम युद्ध में उन्हें जीत भी दिलाई. इसमें गोरखा सिक्ख युद्ध, एंग्लो-सिक्ख युद्ध और अफगान युद्धों के साथ 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दमन में भी शामिल हुए थे. इस रेजिमेंट का कुछ हिस्सा बाद में ब्रिटेन की सेना में भी शामिल हुआ. अब भी ब्रिटिश सेना में गोरखा रेजिमेंट एक अहम अंग है.
आजादी के बाद बंटी गोरखा रेजिमेंट
1947 में जब भारत आजाद हो रहा था तब भारत, नेपाल और ब्रिटेन के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ, जिसके तहत छह गोरखा रेजिमेंट भारतीय सेना में स्थानांतरित कर दी गईं. इसके बाद बाद में एक सातवीं रेजीमेंट और बनाई गईं, तब ये सातों गोरखा रेजिमेंट भारतीय सेना में अपना झंडा गाड़े हुए हैं.
दुनिया के कई हिस्सों में है गोरखा रेजिमेंट
भारत में कई शहरों में गोरखा रेजिमेंट के सेंटर हैं. इसमें वाराणसी, लखनऊ, हिमाचल प्रदेश में सुबातु, शिलांग के ट्रेनिंग सेंटर मशहूर हैं. गोरखा रेजिमेंट को आमतौर पर पर्वतीय इलाकों में लड़ाई का विशेषज्ञ माना जाता है. गोरखपुर में गोरखा रेजिमेंट की भर्ती का बड़ा केंद्र है, लेकिन भारत, नेपाल और ब्रिटेन के अलावा ब्रूनेई और सिंगापुर में भी गोरखा रेजिमेंट किसी न किसी रूप में है.
जय महाकाली- आयो गोरखाली हैनारा
गोरखा की पहचान खुखरी है, जो एक तरह का धारदार खंजर होता है. युद्ध के दौरान गोरखा दुश्मन का सिर काटने के लिए इस खुखरी का इस्तेमाल करते हैं. गोरखा सिपाही जब भी दुश्मन पर हमले के लिए आगे बढ़ते हैं, तो उनकी जुबान पर यह नारा होता है-जय महाकाली, आयो गोरखाली. कहा जाता है कि गोरखा अपने जवानों को मुसीबत में फंसा छोड़कर आगे नहीं बढ़ते हैं.
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