How Late Night Studies Can Affect Your Mental Health: रात में मिलने वाली शांति और सुकून का माहौल बहुत से स्टूडेंट्स को इतना पसंद आता है कि वे पढ़ाई के लिए इसी समय को चुनते हैं. कुछ लोग देर रात तक जागते हैं तो कुछ पूरी-पूरी रात पढ़ते हैं. इसके बदले वे दिन में सोते हैं. हालांकि एक्सपर्ट्स का साफ कहना है कि दिन में कितना भी सो लें लेकिन ये रात की नींद की पूर्ति नहीं कर सकता. इस मामले में हाल ही में एक रिपोर्ट सामने आयी है जो कहती है कि रात में जागना धीरे-धीरे आपकी मेंटल हेल्थ पर गलत असर डालने लगता है. ऐसे स्टूडेंट्स डिप्रेशन और एंग्जाइटी का ज्यादा शिकार हो सकते हैं.


ज्यादा टीनेजर्स क्यों हो रहे हैं डिप्रेशन का शिकार


एएनआई की रिपोर्ट के मुताबिक स्कूलों को इस तरह से डिजाइन नहीं किया गया है जहां सुबह देर तक सोने की छूट हो. ऐसे में जो स्टूडेंट्स देर रात तक या पूरी रात जागते हैं और सुबह स्कूल जाते हैं, उन्हें डिप्रेशन होने के चांस ज्यादा रहते हैं.


क्या कहते हैं आंकड़े


आंकड़े बताते हैं कि जहां स्टडी के लिए चुने गए कुल स्टूडेंट्स में से रात में जागने वाले 40 प्रतिशत टीनेजर्स को डिप्रेशन की समस्या पायी गई. वहीं इनमें से 80 परसेंट में लेट नाइट तक जागना डिप्रेशन की वजह थी.


यही नहीं स्टडी में ये भी सामने आया कि डिप्रेशन के सिम्पटम्स को इम्प्रूव करने के लिए नींद के स्तर में सुधार करना फायदेमंद हुआ. नींद बेहतर करने से डिप्रेशन के लक्षण खुद-ब-खुद कम होने लगे.


कई बार नहीं होती स्टूडेंट की गलती


इस बारे में एक्सपटर्स् का ये भी मानना है कि कई बार देर तक जागना और सुबह देर तक सोना बच्चे के हाथ में नहीं होता. हम बस उसे आलसी बुलाते हैं जबकि कुछ बच्चों की शरीर की बायोलॉजी ही ऐसी होती है कि वे देर से सोते हैं और देर तक सोते हैं. लेकिन इस आदत के बहुत नुकसान है इसलिए बेहतर होगा कि इससे निकलने की कोशिश की जाए लेकिन ऐसे बच्चों को आलसी का तमगा न दें.


नाइट आउल और डिप्रेशन


रिसर्च के बाद ये बात भी सामने आयी की वे स्टूडेंट्स जो देर रात तक जागते हैं और सुबह देर तक सोते हैं उन्हें तुलनात्मक रूप से डिप्रेशन होने की संभावना अधिक रहती है. इसलिए अगर आप भी देर रात तक जागते हों तो संभल जाएं और इस आदत को सुधारने की ओर कदम बढ़ाएं. 


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