सैनिकों को कितनी सैलरी देता था औरंगजेब? हैरान कर देने वाला है ये आंकड़ा
क्या आप जानते हैं कि औरंगजेब अपनी विशाल सेना को कितना वेतन देता था? जानिए घुड़सवार, पैदल सैनिकों और मनसबदारों की सैलरी, उनकी जीवनशैली और मुगलकालीन वेतन प्रणाली के रोचक तथ्य!

मुगल साम्राज्य के इतिहास में औरंगजेब का शासनकाल (1658-1707) अपनी सैन्य शक्ति और विस्तार के लिए जाना जाता है. नए शोध बताते हैं कि इस काल में मुगल सेना अपने सबसे मजबूत समय में थी, जिसने पूरे उत्तर भारत से लेकर दक्षिण के बड़े हिस्सों तक अपना राज कायम किया था.
औरंगजेब की सेना में चार प्रकार के थे सैनिक
औरंगजेब की सेना में मुख्य रूप से चार प्रकार के सैनिक थे. घुड़सवार, पैदल सेना, तोपखाना और हाथी दस्ता. घुड़सवार सेना सबसे प्रतिष्ठित मानी जाती थी, जिसमें करीब 2 लाख सैनिक शामिल थे. पैदल सेना में लगभग 4 लाख सैनिक थे, जो तलवार, भाले और तीर-कमान से लड़ते थे. तोपखाने में करीब 5,000 तोपें थीं और युद्ध के लिए 1,000 विशेष प्रशिक्षित हाथियों का भी इस्तेमाल किया जाता था.
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इतनी बड़ी सेना को औरंगजेब कितना वेतन देता था? यह जानकर आप हैरान रह जाएंगे!
प्रसिद्ध इतिहासकार सतीश चंद्रा की किताब के अनुसार, मुगल साम्राज्य में सैनिकों का वेतन 'मनसबदारी प्रणाली' के तहत तय होता था. इस व्यवस्था को अकबर ने शुरू किया था और औरंगजेब के समय तक यह पूरी तरह विकसित हो चुकी थी.
एक साधारण पैदल सैनिक को हर महीने लगभग 5 से 10 रुपये मिलते थे. आज के हिसाब से यह राशि छोटी लग सकती है, लेकिन उस समय यह एक अच्छी रकम मानी जाती थी, जिससे एक परिवार का भरण-पोषण आसानी से हो सकता था.
घुड़सवार सैनिकों को इससे ज्यादा 20 से 50 रुपये प्रति माह तक मिलता था. उच्च अधिकारियों (मनसबदारों) को तो सैकड़ों या हजारों रुपये की आमदनी होती थी, जिसका इस्तेमाल वे अपने नीचे के सैनिकों को वेतन देने के लिए करते थे.
इस व्यवस्था में वेतन नकद या 'जागीर' (जमीन से होने वाली आय) के रूप में दिया जाता था. इससे सैनिकों की निष्ठा और कार्यक्षमता बनी रहती थी, जिसके चलते औरंगजेब की सेना अपने समय की सबसे शक्तिशाली सेनाओं में से एक बन गई थी.
औरंगजेब की इस वेतन व्यवस्था ने न सिर्फ एक मजबूत सेना बनाने में मदद की, बल्कि उस समय के सामाजिक और आर्थिक ढांचे को भी प्रभावित किया. आज के समय में जब हम अपनी सेना और वेतन व्यवस्था की बात करते हैं, तो 350 साल पहले की इस व्यवस्था से काफी कुछ सीख सकते हैं.
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