Online Teaching: ऑनलाइन टीचिंग आजकल का नया ट्रेंड है, पर दूसरे ट्रेंड्स की तरह इसकी अलग बात यह है कि इसे खुशी-खुशी नहीं मजबूरी में ऑप्ट किया गया है. कोरोना के कारण लगभग सभी स्कूलों को अपने यहां ऑनलाइन क्लासेस कंडक्ट करानी पड़ रही हैं. जिस तरह कोरोना से हालात बद से बदतर हो रहे हैं, यह कहना भी मुश्किल है कि फिजिकल क्लासेस कब शुरू होंगी खासकर छोटे बच्चों की, जिन्हें ऑनलाइन पढ़ाना और भी टेढ़ा काम है. इस बात का दूसरा खराब पहलू यह है कि अधिकतर पैरेंट्स इसे स्कूलों का फीस जस्टिफाई करने का जरिया समझ रहे हैं, जैसा कि बड़ी संख्या में मैसेज सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे हैं, वहीं टीचर्स के लिए ये एक बड़ा सिरदर्द बन गयी हैं. इस काम में मेहनत ज्यादा है और उसे आंका कम जाता है. ऑनलाइन टीचिंग में टीचर्स को आ रही मुश्किलों के बारे में आज हम बात करेंगे.


टेक्नोसेवी नहीं हैं टीचर्स, साथ ही है संसाधन की कमी


ऑनलाइन क्लासेस के लिए जितना टेक्नोसेवी किसी व्यक्ति को होना चाहिए उतना हर टीचर हो, ये जरूरी नहीं. ऐसे में उन्हें नये तरीके से काम-काज सीखने और क्लास संचालित करने में दोगुनी मेहनत करनी पड़ी रही है. जो कांसेप्ट्स किताबों में आसानी से मिल जाते थे, उन्हें नेट पर तलाशकर स्टूडेंट्स के साथ शेयर करने में टीचर्स के पसीने छूट जाते हैं. कई बार तो घंटो के सर्च के बाद भी विषय से संबंधित वीडियोज या क्लिप्स नहीं मिलती, जिन्हें स्टूडेंट्स के साथ शेयर किया जा सके. नतीजतन टीचर्स क्लास कंडक्ट करने के बाद अगले दिन की क्लास के लिए घंटों नेट पर गुजारते हैं. इसके बाद भी पैरेंट्स संतुष्ट नहीं होते, क्योंकि सच तो यह है कि कितना भी प्रयास कर लिया जाए पर ऑनलाइन क्लासेस कभी फिजिकल क्लासेस की जगह नहीं ले सकती.


कुछ ऐसा ही हाल डिवाइसेस को लेकर भी है. यह ऑनलाइन क्लासेस की जिम्मेदारी जो बिना योजना के अचानक टीचर्स के ऊपर आ गयी इसके लिए कई टीचर्स तैयार ही नहीं थे. किसी के पास कंप्यूटर नहीं है तो किसी के लैपटॉप में उनके पति काम करते हैं या उनके खुद के बच्चे ऑनलाइन क्लासेस लेते हैं. ऐसे में एक घर में एक समय में दो से तीन डिवाइस चाहिए. कुछ टीचर्स ने स्मार्ट फोन का प्रयोग करके क्लास कराने की कोशिश करी तो इतने छोटे स्क्रीन पर सभी स्टूडेंट्स पर नजर रखना उनके लिए संभव नहीं था. इतने के बावजूद कभी इंटरनेट नहीं चले तो समस्या और बढ़ जाती है. कई बार टीचर्स जहां काम कर रही हैं वहां के मैनेजमेंट का भी प्रेशर उन्हें हैंडल करना पड़ता है जो सारी प्रक्रिया एकदम स्मूथ चाहते हैं. कई टीचर खुद को इन कामों के लिए तैयार नहीं पाते और दोहरी मार खाते हैं.


अलग-अलग ऐजग्रुप की अलग-अलग समस्याएं


ऑनलाइन क्लासेस के दौरान हर ऐज के स्टूडेंट्स के साथ अलग-अलग तरह की समस्याएं टीचर्स को फेस करनी पड़ती हैं. उदाहरण के तौर पर अगर बच्चा काफी छोटा है तो टीचर उसके लिए कितना भी इंट्रेस्टिंग मॉड्यूल तैयार कर ले, कितने भी खिलौने ले आए या वीडियो दिखा दे, बच्चे को थोड़ी देर बाद कोई रुचि नहीं होती स्क्रीन देखने में, खासकर स्क्रीन पर टीचर को देखने में. पैरेंट्स पकड़-पकड़कर उन्हें बैठाते हैं पर बच्चे एक नहीं सुनते. कोई क्लास के दौरान सोता है, कोई खाना खाता है तो कई स्क्रीन स्क्रिबल कर देता है. कई बार वीडियो ऑफ करके बच्चे खेलते रहते हैं. अंत में परेशान टीचर होती है.


अब अगर थोड़े बड़े बच्चों पर आएं तो उनके साथ अलग तरह की समस्याएं हैं. ये स्टूडेंट्स टीचर्स से ज्यादा टेक्नोसेवी होते हैं और ऑनलाइन एप्लीकेशंस पर कमांड भी रखते हैं. ऐसे में कई बार ये क्लास को डिस्टर्ब करते हैं या कोई ऐसी बदमाशी करते हैं जो डेकोरेम भंग करती है. कुछ बदमाश बच्चे अलग-अलग नामों से आईडी बनाकर क्लास में आ जाते हैं और टीचर को ही परेशान करने लगते हैं, वहीं कुछ तो टीचर को ही क्लास से आउट करके उनकी आईडी ब्लॉक कर देते हैं. धीरे-धीरे मैनेजमेंट ने इन समस्याओं से पार पाने का भी हल निकाला है पर सच तो यह है कि ऑनलाइन क्लासेस के अपने संघर्ष हैं, जिन्हें आसानी से खत्म नहीं किया जा सकता.


उस पर विडंबना यह है कि दोगुनी मेहनत, स्ट्रेस के बाद कई जगहों पर टीचर्स को सैलरी भी नहीं मिल रही. स्कूल के अपने कारण है जैसे पैरेंट्स फीस नहीं दे रहे तो वे कहां से सैलरी दें आदि पर सच तो यह है कि इस ऑनलाइन क्लासेस की चक्की में हर तरफ से टीचर ही पिस रहे हैं और उनके हाथ भी कुछ नहीं लग रहा.


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