बीमार पिता की देखभाल करते हुए रितिका बनीं IAS, जानें सक्सेस स्टोरी
रितिका जिंदल ने पहले प्रयास में असफलता का सामना करने के बाद के बाद मेहनत की और 2018 में यूपीएससी की परीक्षा दी. इस परीक्षा में उन्होंने 88वीं रैंक प्राप्त की.
यूपीएससी यानी संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा की तैयारी करना आसान नहीं होता है. अभ्यर्थियों को काफी कठिनाइयों का सामना करने के बाद ही इस परीक्षा में सफलता प्राप्त होती है. इस लेख में हम बात करेंगे रितिका जिंदल की. जिन्होंने तमाम मुश्किलों का सामना करते हुए यूपीएससी की परीक्षा को पास कर अपने आईएएस अफसर बनने के सपने को पूरा कर दिखाया.
रितिका जिंदल का शुरू से ही आईएएस बनने का सपना रहा है. वह कहती हैं कि शुरू से ही वे लाला लाजपत राय और भगत सिंह की कहानियों को सुनकर बड़ी हुई. इसलिए उन्होंने देश के लिए कुछ करने की ठानकर यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी करने का निश्चय किया. पंजाब के मोगा की रितिका जिंदल ने अपनी शुरुआती पढ़ाई भी यहीं से की. वे शुरू से ही पढ़ाई में काफी अच्छी थी और उन्होंने 12वीं में सीबीएसई बोर्ड में पूरे नॉर्थ इंडिया में टॉप किया था.
12वीं के बाद रितिका ने दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से ग्रेजुएशन किया और 95 प्रतिशत के साथ पूरे कॉलेज में तीसरा स्थान प्राप्त किया. रितिका ने ग्रेजुएशन के दौरान ही यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी और कॉलेज खत्म करने के बाद उन्होंने पहली बार यूपीएससी की परीक्षा दी. तीनों स्टेज को क्लियर कर दिखाया लेकिन फाइनल लिस्ट में वह कुछ ही अंक से पीछे रह गईं. उन्होंने हार नहीं मानी और एक बार फिर परीक्षा देने का फैसला किया. रितिका जिंदल ने पहले प्रयास में असफलता का सामना करने के बाद के बाद खूब मेहनत की और 2018 में दूसरी बार यूपीएससी की परीक्षा दी. आखिरकार रितिका ने सीएसई यानी सिविल सर्विसेज परीक्षा में ऑल इंडिया में 88वीं रैंक प्राप्त कर के आईएएस बनने के सपना को पूरा कर दिखाया.
हालांकि रितिका के लिए आईएएस बनने की राह इतनी भी आसान नहीं थी क्योंकि जब वह पहली बार यूपीएससी की परीक्षा देने की तैयारी कर रही थीं तब उनके पिता टंग कैंसर के शिकार हो गए. कहीं न कहीं इस वजह से रितिका की पढ़ाई भी प्रभावित हुई. जब रितिका दूसरी बार परीक्षा देने की तैयारी कर रही थीं, तब उनके पिता को लंग कैंसर हो गया. रितिका इंटरव्यू में बताती है कि वे एक छोटे शहर से आती हैं जहां पर बहुत सीमित बुनियादी ढांचे और संसाधन उपलब्ध होते हैं. लेकिन रितिका कहती हैं कि पिता को जिंदगी से लड़ते देखकर उन्हें ताकत और प्रेरणा मिली.
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