Ideas of India: हमारे देश में इंग्लिश को केवल कम्यूनिकेशन की भाषा नहीं माना जाता, मोटे तौर पर देखें तो ये क्लास की भाषा मानी जाती है. अंग्रेजी बोलने वालों को एक अलग ही आदर-सम्मान की नजर से देखा जाता है. इसी विषय पर जब एबीपी नेटवर्क के आइडियाज ऑफ इंडिया समिट 2024 में आये गेस्ट्स से बात की गई तो उन्होंने कुछ ऐसे विचार प्रकट किए. इस बारे में बात करते हुए केडी कैम्पस की फाउंडर और टीचर नीतू सिंह और दिल्ली यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर, विजेंद्र सिंह चौहान ने क्या कहा, जानते हैं.


इंग्लिश को हौव्वा न बनाएं


इस बारे में नीतू सिंह ने कहा कि इंग्लिश को केवल एक भाषा के तौर पर लें, इसे हौव्वा न बनाएं. अगर दिल दिमाग पूरी तरह झोंककर कोशिश की जाए तो ये भाषा सीखना इतना भी मुश्किल नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि अगर देश-दुनिया के लेवल पर आप अपनी कनेक्टिविटी बढ़ाना चाहते हैं तो इस भाषा का ज्ञान जरूरी है. हमारे देश में केवल कुछ स्टेट्स ही हैं जहां हिंदी बोली जाती है. इस प्रकार देश में ही अधिकतम लोगों से कनेक्ट होने के लिए आपको इंग्लिश सीखनी ही होगी. इसलिए ये मीन्स ऑफ कम्यूनिकेशन है पर इसका ज्ञान आने वाले समय में बहुत जरूरी है.


सामाजिक विभाजन का टूल है


इस बारे में प्रोफेसर विजेंद्र सिंह ने कहा कि समय बीतने के साथ हिंदी का महत्व बढ़ा है और मीडिया का भी इसमें अच्छा हाथ है लेकिन आज भी इंग्लिश को क्लास की भाषा माना जाता है. भाषा निश्चित तौर पर सामाजिक विभाजन का टूल रही है.


उन्होंने ये भी कहा कि अगर इंग्लिश सभी की भाषा हो गई यानी सभी इसे बोलने लगे तो जो सत्ताधारी होंगे वे किसी नयी भाषा की मांग करेंगे. क्योंकि उन्हें आदत है कि जो मास कर रहा है उन्हें उससे अलग हटकर कुछ करना है.


कांपटीटिव एग्जाम्स में काम आती है इंग्लिश


इंग्लिश के पक्ष में बोलते हुए नीतू सिंह ने ये भी कहा कि आप चाहे जो भी कह लें पर सच ये है कि अगर इंग्लिश आती है तो कांपटीटिव एग्जाम्स में भी मदद मिलती है. ज्यादातर एग्जाम्स की तैयारी में इंग्लिश न्यूजपेपर का कंटेंट ही काम आता है.


यही नहीं ज्यादातर अच्छी किताबें भी अंग्रेजी में ही हैं. रही ट्रांसलेशन की बात तो ऐसा करने से उनकी आत्मा मर जाती है. वैसे ही जैसे अगर आप उर्दू या हिंदी के शेर या कविता को अगर इंग्लिश में बदलेंगे तो उसका स्वरूप खत्म हो जाएगा. इसलिए कांपटीटिव एग्जाम से लेकर जीवन के विभिन्न पहलुओं में आगे खड़े होने के लिए अंग्रेजी की जरूरत है.


हिंदी को थोपने की कोशिश न करें


नीतू सिंह ने आगे ये भी कहा कि इंडिया को वर्ल्ड के लेवल पर देखना चाह रहे हैं तो हिंदी को न थोपें. इसका ज्ञान अच्छा है लेकिन अंग्रेजी भी जरूरी है. रही 21 दिन या 45 दिन में फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने की बात तो ये सरासर गलत है. किसी भी भाषा पर पकड़ हासिल करने में समय लगता है. अगर सही गाइडेंस मिले तो ये समय कम हो सकता है लेकिन इतना कम नहीं. हां अगर आप अपना दिल दिमाम सब झोंक दें और केवल इस काम पर फोकस करें तो हो सकता है 20-30 दिन में अंग्रेजी सीख जाएं. 


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