IIT से पास आउट 35 से 40 फीसदी कैंडिडेट्स को नहीं मिली नौकरी, क्या है प्लेसमेंट न होने की वजह?
IIT Students Placement: आईआईटी जैसे प्रीमियम संस्थान से पढ़ाई करने के बाद भी 35 से 40 फीसदी स्टूडेंट्स को प्लेसमेंट क्यों नहीं मिल रहा है. क्यों आईआईटी बड़ी कंपनियों को आकर्षित नहीं कर पा रही हैं?
Why IIT Students Are Not Getting Placed: इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी देश के सबसे प्रतिष्ठित संस्थानों में से एक माने जाते हैं. यहां एडमिशन लेना कैंडिडेट्स का सपना होता है और लगभग हर किसी का ऐसा मानना है कि आईआईटी में एडमिशन यानी कैंडिडेट का करियर सेट. वहां से निकलने के बाद बढ़िया सैलरी की नौकरी मिलेगी, कंपनियों हाथों-हाथ लेंगी और प्लेसमेंट में कोई परेशानी नहीं होगी. पर नया ट्रेंड कुछ और कह रहा है.
नहीं मिला प्लेसमेंट
अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस साल आईआईटी के स्टूडेंट्स का प्लेसमेंट काफी स्लो रहा. बड़े संस्थानों के भी 35 से 40 फीसदी छात्रों को प्लेसमेंट नहीं मिला. ये जान लें कि आईआईटी में प्लेसमेंट दो चरण में होते हैं. पहला दिसंबर में और दूसरा जनवरी और जून में. इस बार पहली बार ऐसा हुआ कि आईआईटी बॉम्बे जैसे प्रिमियर संस्थान के भी 100 प्रतिशत स्टूडेंट्स को प्लेसमेंट नहीं मिला.
आईआईटी बॉम्बे से लेकर दिल्ली, कानपुर और खड़गपुर तक प्लेसमेंट का हाल पिछले दो साल से बेहाल है. जैसे पहले प्लेसमेंट होता था वैसा अब नहीं हो रहा है.
क्या हो सकती है वजह
इस बारे में मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो उनका कहना है कि इकोनॉमिक स्लो डाउन की वजह से प्लेसमेंट में कमी आ रही है. बड़ी कंपनियां आर्थिक रूप से जूझ रही हैं और ये समस्या ग्लोबल लेवल पर है. आईआईटी के स्टूडेंट्स के प्लेसमेंट के लिए मोटे तौर पर यूके और यूएस की कंपनियां आती हैं. इस बार ये कंपनियां यहां के कैंडिडेट्स के प्री डिसाइडेड पैकेज पर हां नहीं बोल रही हैं.
कई राउंड के बाद भी नहीं बनती बात
आईआईटी जैसे संस्थानों से पढ़ाई करने के बाद कैंडिडेट्स का सैलरी स्ट्रक्चर लगभग तय होता है, वे उससे कम पर काम नहीं करना चाहते. ऐसे में ये कंपनियां पहले से डिसाइडेट यानी प्री डिसाइडेड सैलरी पैकेज के लिए तैयार नहीं हैं. कई राउंड कैंडिडेट्स से बात चलती है, कई राउंड नेगोसिएशन होता है तब कहीं बात बनती है और कई बार बात बनती भी नहीं.
ओवर हायरिंग से बच रही हैं कंपनियां
इस बारे में एक्सपर्ट्स का ये भी कहना है कि कंपनियां ओवर हायरिंग से बच रही हैं. कुछ एंड सीजन में आना चाहती हैं. हो सकता है जिनकी हायरिंग अब तक नहीं हुई है वे जून में नौकरी पा जाएं. कई बार कैंडिडेट्स की शर्तों के साथ कंपनी की शर्तें मैच नहीं करती इसलिए भी बात अटक जाती है. इसके साथ ही कोविड के बाद से ये स्लो डाउन बढ़ा है. इस सब को देखते हुए मन में सवाल खड़ा हो रहा है कि क्या अब आईआईटी करने के बाद भी स्टूडेंट्स प्लेसमेंट के लिए संघर्ष करेंगे?
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