Kanyakumari Clove GI Tag: भारत को मसालों का देश कहा जाता है. हमारे देश के मसालों की मांग सैकड़ों सालों से पश्चिमी देशों में रही है. मसालों के बिना खाने का जायका अधूरा है. कुछ मसाले ऐसे होते हैं जो ना सिर्फ खाने को स्वादिष्ट बनाते हैं बल्कि उनमें औषधीय गुण भी होते हैं.
'कन्याकुमारी लौंग' को ऐसे ही मसाले के तहत रखते हैं. इसे इसके खास गुणों के चलते जीआई टैग(भौगोलिक संकेतक)दिया जा चुका है. अपने इस आर्टिकल में हम आपको 'कन्याकुमारी लौंग' के बारे में बताएंगे-
कहां होती है 'कन्याकुमारी लौंग' की खेती-
'कन्याकुमारी लौंग' को अक्टूबर 2021 में जीआई टैग दिया गया. इसकी खेती तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले के पश्चिमी घाट में समुद्र तल से 400 से 900 मीटर की ऊंचाई पर मरमलाई,करुमपराई,और वेल्लम पराई क्षेत्र में की जाती है. महेन्द्रगिरी(तमिलनाडु) में भी इसकी खेती की जाती है. कन्याकुमारी लौंग का वानस्पतिक नाम 'सिजिजियम एरौमेटिकम' है.
आपको यह जानकर हैरत होगी कि लौंग की यह किस्म अँग्रेजों के द्वारा 1800 ई. में लाई गई थी. बाद में कन्याकुमारी क्षेत्र सहित अन्य क्षेत्रों में इसका व्यापक उत्पादन होने लगा.
क्या है खासियत-
'कन्याकुमारी लौंग' में वोलेटाइल ऑयल कंटेंट की मात्रा अधिक रहती है. इसके अलावा 'कन्याकुमारी लौंग' अपनी खास तरह की सुगंध के लिए भी जानी जाती है. देश में होने वाले कुल लौंग उत्पादन का 65 प्रतिशत अकेले कन्याकुमारी लौंग के रूप में होता है.
क्या होता है जीआई टैग-
जीआई टैग कृषि,प्राकृतिक या किसी ऐसे निर्मित उत्पाद को दिया जाता है जो कि एक विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र से संबंधित हो और उसमें खास गुणों के साथ-साथ अलग विशेषताएं हों.
जीआई टैग से फायदा-
जीआई टैग मिलने से उस वस्तु या खास कृषि उत्पाद से जुड़े लोगों को प्रोत्साहन मिलता है. कृषि और प्रसंस्करण खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण(APEDA)के अनुसार जीआई टैग को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में एक ट्रेडमार्क की तरह देखा जाता है. इससे अंतर्राष्टीय बाजार में जीआई टैग प्राप्त उत्पादों की मांग बढ़ती है.
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