Indian Air Force: ये है भारतीय वायु सेना की स्पेशल फोर्स, नाम सुनकर ही कांपते है विरोधी, जानिए इतिहास
Indian Air Force: गरुड़ कमांडो फोर्स की ट्रेनिंग सबसे मुश्किल और सबसे लंबी होती है. इस फोर्स का नाम से दुश्मन भी डरते हैं.
Saga of Courage: गरुड़ कमांडोज को भारत की उन एलीट स्पेशल फोर्सेज में गिना जाता है जिनके नाम से दुश्मन की रूह कांप जाती है. इस फोर्स में चयनित होना जितना कठिन है, उतना ही कठिन है इसकी सबसे लंबी और थका देने वाली ट्रेनिंग को पूरा करना. एक हजार दिन से ज्यादा के प्रशिक्षण के बाद जो युवा पास होते हैं उन्हें गरुड़ कमांडो के तौर पर मातृ भूमि की सेवा का अवसर मिलता है. आइये जानते हैं इस स्पेशल फोर्स के बारे में...
वायु सेना का सबसे घातक हथियार है गरुड़
फरवरी 2004 में गठित हुए इस स्पेशल फोर्स को गरुड़ देव से नाम मिला है. गरुड़ पक्षी की ही तरह ये कमांडो भारतीय वायुसेना का हिस्सा हैं. जल, थल व वायु सेना की विभिन्न एलीट फोर्स में गरुड़ कमांडो की मुश्किल ट्रेनिंग करीब 1000 दिन की होती है. देश के वायुसेना के बेस व युद्ध की स्थिति विशेष टास्क पर काम करने की जिम्मेदारी होती है. गरुड़ कमांडो अत्याधिक हथियारों से लैस होते हैं. इस फोर्स को दुश्मन के हवाई क्षेत्र में हमला करने, दुश्मन के रडार व अन्य उपकरणों को ध्वस्त करने, स्पेशल कॉम्बैट और रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए खास तौर पर तैयार किया जाता है.
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कई चरणों में पूरी होती है मुश्किल ट्रेनिंग
गरुड़ कमांडो की ट्रेनिंग वैसे तो करीब तीन साल की होती है लेकिन इसे कई चरणों में पूरा किया जाता है. पहले चरण में गरुड़ कमांडो के लिए चयनित युवाओं को 72 हफ्तों की बेसिक ट्रेनिंग गाजियाबाद के हिंडन एयरबेस पर ट्रेनिंग दी जाती है. इसमें पैराशूट का इस्तेमाल शामिल है। इसके बाद उन्हें वहां से नौसेना स्कूल भेजा जाता है और फिर थल सेना के आउंटर इन्सर्जेन्सी एंड जंगल वाॅरफेयर स्कूल भेजा जाता है. इस तरह इन्हें हर तरह की स्थिति और हर तरह के युद्ध कौशल का प्रशिक्षण दिया जाता है.
इसलिए किया गया था गठन
साल 2001 में आतंकियों ने भारतीय वायुसेना के जम्मू कश्मीर में स्थित दो हवाई बेसों को निशाना बनाते हुए उनपर हमला किया. इन हमलों के बाद वायुसेना अड्डों की सुरक्षा और काउंटर ऑपरेशन के लिए अपनी अगर कमांडो फोर्स की जरूरत महसूस की गई. इसी के बाद वायुसेना ने अपना अलग सेलेक्शन प्रोसेस तैयार कर गरुड़ कमांडो फोर्स का गठन किया. इस फोर्स को पैरा एसएफ और इंडियन नेवी के मारकोस की तर्ज पर तैयार किया गया.
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वायुसेना का अधिकारी करता है नेतृत्व
मारकोस और पैरा एसएफ में जहां विभिन्न सैन्य इकाइयों से कमांडो को चयन के लिए बुलाया और परखा जाता है. वहीं, गरुड़ कमांडो का चयन सेना ही करती है और यह उसके स्थायी कर्मी होते हैं. हर एयरफोर्स स्टेशन पर तैनात गरुड़ कमांडो की 60 से 70 सदस्यों वाली टीम का एक स्क्वाड्रन लीडर या फ्लाइट लेफ्टिनेंट रैंक का अधिकारी नेतृत्व करता है.
हर जगह साबित कर रहे अपनी उपयोगिता
शुरूआती दौर में इस कमांडो फोर्स को सिर्फ एयरफोर्स बेस और काउंटर इन्सर्जेंसी के लिए ही रखा गया था. हालांकि समय के साथ उनकी उपयोगिता को देखते हुए देश की तकरीबन हर मुश्किल में अब गरुड़ कमांडो को तैनात किया जा रहा है. हाल ही में भारत-चीन टकराव के दौरान इस फोर्स काे लद्दाख में रणनीतिक महत्व वाली चोटियों पर तैनात किया गया था. साथ ही उन्हें 2019 से जम्मू कश्मीर की आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल ऑपरेशन डिवीजन में शामिल किया गया है जो आतंकियों के खिलाफ एक्शन में शामिल हो रही है.
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