Gautam Adani: आज के समय में जब गौतम अदाणी की चर्चा होती है, तो उनका नाम दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूची में शुमार होता है. उनकी सफलताओं का साम्राज्य 220 अरब डॉलर तक फैला हुआ है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह सफलताएं एक समय पर अस्वीकार से शुरू हुई थीं?


हमारे देश के इस उद्योगपति की कहानी में एक दिलचस्प मोड़ तब आया जब उन्होंने 1970 के दशक में मुंबई के जय हिंद कॉलेज में शिक्षा के लिए आवेदन किया था. यह वही कॉलेज है, जहां से आज उन्हें शिक्षक दिवस पर छात्रों को प्रेरणादायक व्याख्यान देने के लिए बुलाया गया. लेकिन कॉलेज ने उनके आवेदन को अस्वीकार कर दिया था.

जय हिंद कॉलेज के पूर्व छात्रों के संघ के अध्यक्ष विक्रम नानकानी ने इस दिलचस्प तथ्य को साझा करते हुए बताया कि गौतम अदाणी, जो आज भारत के सबसे अमीर व्यक्तियों में शामिल हैं, गौतम अदाणी ने 16 साल की उम्र में मुंबई आकर हीरे की छंटाई का काम शुरू किया. उनके बड़े भाई विनोद पहले से जय हिंद कॉलेज में पढ़ते थे, इसलिए उन्होंने भी उसी कॉलेज में दाखिला लेने का प्रयास किया. लेकिन उनके आवेदन को खारिज कर दिया गया, जिससे उनके भविष्य की राह बदल गई.


करोबार की ओर बढ़ाए कदम


अदाणी ने अपनी पढ़ाई को छोड़कर कारोबार की ओर रुख किया और लगभग साढ़े चार दशकों में उन्होंने एक विशाल साम्राज्य खड़ा किया. उनके व्यापारिक प्रयासों ने उन्हें बुनियादी ढांचा, बिजली, सिटी गैस, नवीकरणीय ऊर्जा, सीमेंट, रियल एस्टेट, डेटा सेंटर और मीडिया जैसे विविध क्षेत्रों में सफलता दिलाई. उनकी कंपनियां आज देश के 13 बंदरगाहों और सात हवाई अड्डों का संचालन करती हैं. अदाणी की कंपनियां बिजली के क्षेत्र में निजी क्षेत्र की सबसे बड़ी इकाई हैं और वे एशिया की सबसे बड़ी झुग्गी-बस्ती का पुनर्विकास भी कर रही हैं.


16 साल की उम्र में पहली सीमा तोड़ने का फैसला


‘ब्रेकिंग बाउंड्रीज़: द पावर ऑफ पैशन एंड अनकन्वेंशनल पाथ्स टू सक्सेस’ विषय पर व्याख्यान देते हुए, 62 वर्षीय अदाणी ने कहा कि वह केवल 16 वर्ष के थे जब उन्होंने अपनी पहली सीमा को तोड़ने का फैसला किया. उन्होंने कहा, ‘‘इसका संबंध पढ़ाई-लिखाई छोड़ने और मुंबई में एक अनजाने से भविष्य की ओर जाने से था. लोग अब भी मुझसे पूछते हैं, ‘‘आप मुंबई क्यों चले गए? आपने अपनी शिक्षा पूरी क्यों नहीं की?’’ अदाणी ने कहा, ‘‘इसका उत्तर सपने देखने वाले हर युवा के दिल में है जो सीमाओं को बाधाओं के रूप में नहीं बल्कि चुनौतियों के रूप में देखता है जो उसके साहस की परीक्षा लेती हैं.’’ उन्होंने कहा ‘‘मुझे यह महसूस हुआ था कि क्या मुझमें हमारे देश के सबसे महत्वपूर्ण शहर में अपना जीवन जीने का साहस है.’’ कारोबार के लिए मुंबई उनका प्रशिक्षण स्थल था क्योंकि उन्होंने हीरों की छंटाई और व्यापार करना सीखा था.  


सबसे बड़ा गेम चेंजर


उनकी कहानी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था 1990 के दशक में कच्छ में दलदली भूमि को भारत का सबसे बड़ा बंदरगाह बनाने का. अदाणी ने इसे एक अवसर के रूप में देखा, जबकि अन्य लोग इसे बंजर भूमि मानते थे. आज मुंद्रा क्षेत्र में सबसे बड़े बंदरगाह, औद्योगिक विशेष आर्थिक क्षेत्र, थर्मल पावर स्टेशन, सोलर मैन्युफैक्चरिंग फैसिलिटी सेंटर और खाद्य तेल रिफाइनरी मौजूद हैं.


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