Jawaharlal Nehru University: पिछड़े क्षेत्रों से आने वाले छात्रों के लिए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) ने एक कदम उठाया है. जेएनयू द्वारा समानता लाने के लिए पीएचडी कोर्स में फिर से डेप्रिवेशन प्वाइंट सिस्टम व्यवस्था (Deprivation Point Model) लागू की जाने की उम्मीद है. इस व्यवस्था को लागू करने के लिए जेएनयू (JNU) प्रशासन द्वारा विचार किया जा रहा है. इस सिस्टम के लागू होने से पिछड़े क्षेत्रों के छात्रों को खासकर छात्राओं को एडमिशन (Admission) में मदद मिल पाएगी.
समानता के लिए मॉडल
दरअसल, पहले जेएनयू में पीएचडी (PhD) दाखिला में डेप्रिवेशन प्वाइंट सिस्टम व्यवस्था लागू की जाती थी, लेकिन कुछ समय पूर्व इस सिस्टम को हटा दिया गया था. इसे लेकर जेएनयू की कुलपति प्रोफेसर शांति श्री धूलिपुड़ी पंडित (Vice Chancellor Professor Shanti Shree Dhulipudi Pandit) बताती हैं कि डेप्रिवेशन पॉइंट मॉडल जेएनयू की सबसे अलग और अनूठी व्यवस्थाओं में से एक है. विश्वविद्यालय में समानता लागू करने के लिए डेप्रिवेशन प्वाइंट मॉडल की जरूरत है. जिसके लिए इसे फिर से लागू किया जाएगा.
क्या बोलीं कुलपति?
विश्वविद्यालय की कुलपति (Vice Chancellor) ने कहा है कि पीएचडी में एडमिशन (PhD Admission) लेने में यह व्यवस्था लागू करने के पीछे बड़ा कारण आरक्षित सीटों का ना भरना है. प्रत्येक वर्ष आरक्षित कोटे के लिए तय सीटें खाली रह जाती हैं. जिसके चलते यूनिवर्सिटी ने तय किया है कि ये व्यवस्था लागू की जाए ताकि अधिक से अधिक एडमिशन हो सकें. विभिन्न पिछड़े क्षेत्रों के छात्रों को दाखिले के समय 1 से 5 अंक मिलते हैं. इसके साथ ही महिलाओं और ट्रांसजेंडर को भी ये अंक दिए जाते हैं.
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