जानिए तिरुपति मंदिर में कैसे बनते हैं पुजारी, पढ़ाई के साथ-साथ कितनी होती है सैलरी
तिरुपति की सालाना कमाई 420 करोड़ रुपये है. क्या आपको पता है कि इस मंदिर में पुजारी लगने के लिए कितनी पढ़ाई करनी पड़ती है? वहीं कितनी सैलरी यहां के पुजारियों को मिलती है? चलिए हम आपको बताते हैं...
तिरुपति बालाजी मंदिर के बारे में तो आप सबने सुना होगा. आपको ये भी पता होगा कि ये मंदिर विश्व में सबसे धनी मंदिरों में से एक है. आइए हम आपको बताते हैं कि इस मंदिर में जो पुजारी पूजा करते हैं वो कितने पढ़े लिखें हैं और उन्हें कितनी सैलरी या भत्ता मिलता है. हम आपको बताएंगे कि किस तरह से मंदिर में मैनेजमेंट काम करता है.
इस तरह तैयार किए जाते हैं पुजारी
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार भगवान वेंकटेश्वर की सेवा में पुजारी तैयार करने के लिए टीटीडी (तिरुमला तिरुपती देवस्थानम) चार पाठ्यक्रम कराता है: वेद पारायण, दिव्य प्रबंध, अर्चकत्वम, पुरोहितवम. वेद पारायण कोर्स 12 साल का है, जबकि बाकी तीन कोर्स आठ-आठ साल के हैं. टीटीडी इन कोर्सों के लिए पूरी तरह से प्रायोजन करता है और 1,000 रुपये का वजीफा भी देता है.
29 सदस्यों का बोर्ड चलाता है मंदिर
बोर्ड में राज्य विधानमंडल के प्रतिनिधियों सहित अधिकतम 29 सदस्य हो सकते हैं, जिनमें विभिन्न राज्यों के लोग शामिल होते हैं. तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (TTD) की स्थापना 1933 में TTD अधिनियम के तहत हुई थी और वर्तमान संरचना आंध्र प्रदेश धर्मार्थ और हिंदू धार्मिक संस्थान और बंदोबस्ती अधिनियम के अधीन है.
एक ट्रस्टी का इतना होता है कार्यकाल
एक ट्रस्टी का कार्यकाल तीन साल का होता है. उसे पुनः नियुक्त किया जा सकता है, या उसकी जगह किसी नए व्यक्ति को ट्रस्टी नियुक्त किया जा सकता है, यह निर्णय सरकार द्वारा लिया जाता है. नियुक्ति पूरी तरह से आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा की जाती है. मौजूदा बोर्ड में कुछ विधायक शामिल हैं, साथ ही विभिन्न पृष्ठभूमियों और राज्यों के लोग भी हैं, जो इसके प्रशासन में विविधता लाने की कोशिश करते हैं.
ये है ट्रस्ट मेंबर की चयन प्रक्रिया
चयन प्रक्रिया में आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा नियुक्तियों की घोषणा की जाती है. फिर प्राप्त आवेदनों के माध्यम से यह सुनिश्चित किया जाता है कि बोर्ड में विभिन्न राज्यों, स्थानीय और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व को उचित स्थान दिया जाए. वर्तमान में, मौजूदा बोर्ड सदस्य आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, कर्नाटक और महाराष्ट्र से हैं.
इतना मिलता है पुजारियों को वेतन
रिपोर्ट्स के अनुसार पुजारियों का वेतन विभिन्न प्रकार से निर्धारित होता है. मंदिर का मुख्य पुजारी, जिसे प्रधान अर्चक कहा जाता है, वंशानुगत होता है और उसका मासिक वेतन लगभग 82,000 रुपये होता है, इसके अलावा उन्हें अन्य सुविधाएं भी मिलती हैं. दूसरे हेड पुजारी भी वंशानुगत होते हैं और उन्हें हर महीने 52,000 रुपये वेतन के रूप में प्राप्त होते हैं, हालांकि भत्तों की राशि का खुलासा नहीं किया जाता.
गैर वंशानुगत पुजारियों का वेतन 30,000 से 60,000 रुपये तक होता है, जो उनके अनुभव पर निर्भर करता है. कुछ वंशानुगत पुजारियों को उनके योगदान के बदले एकमुश्त बड़ी राशि भी दी जाती है, जैसे रमन्ना दीक्षितुलु को उनकी सेवाओं के बदले 30 लाख रुपये दिए गए थे.
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