Moon Lighting: 'मून लाइटिंग' पर कॉर्पोरेट जगत में मतभेद, कई टेक कंपनियां सहमत, तो कुछ असमहत
इन दिनों भारतीय कॉर्पोरेट जगत में नए नए पनप रहे मून लाइटिंग सिस्टम को लेकर बहस छिड़ी हुई है. कुछ कंपनियां इसके सपोर्ट में हैं, तो कुछ इसका विरोध कर रही हैं.
कोरोना महामारी के बाद अब ज्यादातर नौकरीपेशा लोग वर्क फ्रॉम होम कर रहे हैं. ऐसे में एक साथ दो नौकरियां (मून लाइटिंग) करने का कल्चर बढता जा रहा है. हाल ही में फूड डिलीवरी कंपनी स्विगी ने अपनी संस्था में मून लाइटिंग पॉलिसी की घोषणा की थी. स्विगी के इस कदम के बाद से ही इस बात पर बहस छिड़ गई है कि मून लाइटिंग सही है या गलत. जहां एक ओर कुछ कंपनियां इस नए वर्क सिस्टम को सपोर्ट कर रही हैं, वहीं विप्रो जैसी बड़ी और टेक कंपनियां इसका विरोध कर रही है. बता दें कि किसी एक कंपनी में काम के बाद बचे हुए समय में दूसरी कंपनी में काम करना मून लाइटिंग कहलाता है.
विप्रो के चैयरमैन ऋषद प्रेमजी ने मून लाइटिंग का विरोध किया है और इसे कर्मचारी के द्वारा संस्था के खिलाफ धोखाधड़ी करार दिया है. वहीं इंफोसिस के पूर्व निदेशक मोहनदास, अजीमप्रेजी की राय से बिलकुल अलग राय रखते हैं. मोहनदास का इस मामले में कहना है कि संस्था और कर्मचारी के बीच करारनामे के अनुसार कोई भी कर्मचारी अपनी संस्था को तय समय देता है, लेकिन बाकी समय में वो कोई भी काम करने के लिए आजाद है. ऐसे में कर्मचारी पर दूसरे संस्था में काम करने का प्रतिबंध नहीं लगाना चाहिए. टीसीएस और टेक महिंद्रा ने इस मामले में अपनी पॉलिसी बनाने की बात कही है.
2020 में कोरोना महामारी के कारण लगभग सभी कंपनियों ने अपने कर्मचारियों को वर्क फ्रॉम होम की सुविधा दी थी, जिसकी वजह से इस मूनलाइटिंग कल्चर की शुरूआत हुई है. लोग एक कंपनी में काम के साथ साथ खाली समय में एक्स्ट्रा कमाई के लिए दूसरी कंपनियों में भी पार्ट टाइम काम कर रहे हैं.
बता दें कि अमेरिका और ब्रिटेन जैसे कुछ देशों में शर्तों के साथ मून लाइटिंग को कानूनी मान्यता मिली हुई है, वहीं भारत में अभी मून लाइटिंग को लेकर कोई कानून नहीं है. लेकिन स्विगी के द्वारा बयान के बाद भारत में भी ये चर्चा छिड़ गई है कि मून लाइटिंग लीगल है या नहीं.
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