कोच्चि: केरल हाई कोर्ट ने एक बड़ा फैसला देते हुए कहा है कि इंटरनेट का इस्तेमाल करना संविधान में मिली शिक्षा के अधिकार और निजता के अधिकार का हिस्सा है. इसके साथ ही हाई कोर्ट ने उस छात्रा को कॉलेज के हॉस्टल में फिर से प्रवेश देने का निर्देश दिया जिसे मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर लगे पाबंदी के खिलाफ आवाज उठाने पर पर निकाल दिया गया था. हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि ज्ञान प्राप्त करने के माध्यम और तरीकों पर रोक लगाकर अनुशासन नहीं थोपा जाना चाहिए.


गुरुवार को अपने फैसले में न्यायमूर्ति पीवी आशा ने कहा, ''यूएन की मानवाधिकार परिषद ने पाया है कि इंटरनेट का इस्तेमाल करना एक मौलिक आजादी है. यह शिक्षा का अधिकार सुनिश्चित करने का भी एक जरिया है. ऐसा कोई भी नियम या निर्देश जो छात्रों के इस अधिकार को हानि पहुंचाता है, उसे कानूनन इजाजत नहीं दी जा सकती.''


कालीकट विश्वविद्यालय के एक सरकारी सहायता प्राप्त कॉलेज की बीए के तीसरे सेमेस्टर की छात्रा ने हॉस्टल से निकाले जाने को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका डाली थी. उस याचिका पर अदालत ने यह फैसला दिया है.


याचिका में छात्रा ने कहा कि छात्रावास में रहने वालों को हॉस्टल के भीतर रात दस बजे से सुबह छह बजे तक मोबाइल इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं है. ग्रेजुएशन छात्राओं को हॉस्टल में लैपटॉप इस्तेमाल करने की भी अनुमति नहीं है. इसमें यह भी कहा गया कि इस तरह की पाबंदियां केवल लड़कियों के छात्रावास में ही लगाई गई हैं.


हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि मोबाइल फोन के इस्तेमाल पर पूरी तरह से पाबंदी और पढ़ाई के घंटों में इसे जमा करवाने का निर्देश पूरी तरह से गैरजरूरी है. हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि अनुशासन लागू करते वक्त मोबाइल फोन के सकारात्मक पहलू को देखना भी जरूरी है.


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