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Lady Meherbai Tata: ये थीं भारत की पहली महिला टेनिस ओलंपियन, हीरा गिरवी रख टाटा स्टील को था बचाया, पढ़ें उनकी कहानी
टाटा की स्टील सेक्टर की कंपनी टिस्को जिसे आज टाटा स्टील कहा जाता है, उसे 1920 में दिवालिया होने से बचाने के लिए मेहरबाई टाटा ने अपना कोहिनूर से दोगुना बड़ा हीरा गिरवी रख दिया था.
क्या आपने लेडी मेहरबाई टाटा का नाम सुना है? वो वह महिला थीं जिन्होंने अपने पति की कंपनी को दिवालिया होने से बचाने के लिए अपने गहने बैंक में गिरवी रखकर धन जुटाया था. मेहरबाई के पास कोहिनूर हीरे से भी बड़ा हीरा था जिसे उन्होंने 1920 में टिस्को (वर्तमान में टाटा स्टील) को बचाने के लिए गिरवी रख दिया था. ऐसे कई किस्से हैं जो मेहरबाई की शख्सियत की झलक देते हैं. आइये हम आपको मेहरबाई के ऐसे ही अनसुने किस्सों से रूबरू कराते हैं...
18 साल में दोराबजी टाटा से हुई थी शादी
मेहरबाई का जन्म 10 अक्टूबर 1879 को मुंबई (तब बॉम्बे) में हुआ था. उनके पिता होर्मुसजी जे. भाभा हायर एजुकेशन प्राप्त करने के लिए इंग्लैंड जाने वाले पहले पारसियों में से एक थे. जब उनका परिवार बैंगलोर चला गया तो उनकी शिक्षा बिशप कॉटन स्कूल में हुई. 1884 में उनके पिता को मैसूर के महाराजा कॉलेज का प्रिंसिपल नियुक्त किया गया. मेहरबाई की शादी 18 साल की उम्र में जमशेदजी टाटा के बड़े बेटे सर दोराबजी टाटा से हुई थी.
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1924 में पेरिस ओलंपिक में लिया था हिस्सा
टाटा ग्रुप के संस्थापक जमशेदजी टाटा की बहू लेडी मेहरबाई टाटा अपने समय से आगे की महिला थीं. वह भारत की पहली नारीवादी कार्यकर्ता थीं. 1924 में वह पेरिस ओलंपिक में टेनिस में भाग लेने वाली पहली भारतीय महिला बनीं. उन्होंने पारंपरिक साड़ी पहनकर ऐसा किया. मेहरबाई के प्रयासों से भारत में बाल विवाह पर प्रतिबंध लगाने वाला 1929 का कानून भी बना. वह केवल टेनिस ही नहीं बल्कि एक अच्छी घुड़सवारी भी करती थी. साथ ही एक कुशल पियानो वादक भी थीं.
टिस्को को दिवालिया होने से बचाया था
मेहरबाई ने कठिन वित्तीय समय के दौरान टाटा समूह को बचाने में भी बहुत अहम भूमिका निभाई थी. 1924 में जब टाटा स्टील (तब टिस्को) महामंदी के कारण संघर्ष कर रही थी तो उन्होंने कंपनी को बचाए रखने में मदद करने के लिए अपना बेशकीमती जुबली डायमंड गिरवी रख दिया था. यह डायमंड प्रसिद्ध कोहिनूर से दोगुना बड़ा रत्न था. इसकी वजह से न सिर्फ बिजनेस दिवालिया होने से बचा बल्कि टाटा स्टील दुनिया की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक बन गई.
देश-दुनिया के लिए छोड़ गईं स्थायी विरासत
दुख की बात है कि लेडी मेहरबाई का 1931 में 52 वर्ष की आयु में ल्यूकेमिया से निधन हो गया. उनके काम ने टाटा मेमोरियल अस्पताल और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के रूप में एक स्थायी विरासत छोड़ी, जिसकी फाइनेंसिंग उनके हीरे की बिक्री से प्राप्त धन से किया गया था. अब जब कभी आप जमशेदपुर में मेहरबाई कैंसर अस्पताल जाएंगे या फिर सर दोराबजी टाटा पार्क विजिट करेंगे, तो मेहरबाई से जुड़ी कहानियों से रूबरू होंगे.
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