देश में बड़ी संख्या में छात्राएं स्कूल की पढ़ाई को बीच में ही छोड़ देती हैं. संसद में पूछे गए एक सवाल के जवाब में इस बात का खुलासा हुआ कि देश में स्कूल छोड़ने की दर माध्यमिक शिक्षा के दौरान अधिक है. बच्चों के स्कूल छोड़ने के मुख्य कारणों में सामाजिक-आर्थिक कारण शामिल हैं.
शिक्षा मंत्रालय में राज्य मंत्री जयंत चौधरी ने बताया कि स्कूल शिक्षा और साक्षरता विभाग (डीओएसईएल), शिक्षा मंत्रालय ने देश भर में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए समग्र शिक्षा योजना शुरू की है. इस योजना का उद्देश्य स्कूली शिक्षा के सभी स्तरों पर लैंगिक और सामाजिक अंतर को कम करना है. समग्र शिक्षा के तहत बालिकाओं की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई तरह की सुविधाएं दी जा रही हैं. इनमें मुफ्त ड्रेस और किताबें, लिंग के आधार पर अलग-अलग शौचालय, आत्मरक्षा प्रशिक्षण और छात्रवृत्ति शामिल हैं.
केजीबीवी का क्या है रोल
मंत्री ने आगे बताया कि कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय (केजीबीवी) शैक्षिक रूप से पिछड़े ब्लॉकों में स्थित हैं, जहां ग्रामीण महिला साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से कम है. ये विद्यालय अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, अल्पसंख्यक और गरीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) जैसे वंचित समूहों से संबंधित लड़कियों के लिए कक्षा VI से XII तक आवासीय विद्यालय हैं. इन विद्यालयों का उद्देश्य लड़कियों के लिए स्कूली शिक्षा के सभी स्तरों पर पढ़ाई बीच में छोड़ने की दर को कम करना है.
क्या है वजह?
जयंत चौधरी ने सवाल का जवाब देते हुए ये भी बताया है कि स्कूल छोड़ने का प्रमुख कारण सामाजिक व आर्थिक स्थिति है. पारिवारिक आय में मदद, घरेलू कामों में भागीदारी, पढ़ाई में रुचि की कमी, स्वास्थ्य समस्याएं और माता-पिता की उदासीनता, स्कूली शिक्षा छोड़ने के कुछ प्रमुख कारणों में से एक हैं.
साल 2019-20, 2020-21 और 2021-22 के लिए छात्राओं की स्तर वार स्कूल छोड़ने की दर
शैक्षणिक स्तर | 2019-20 | 2020-21 | 2021-22 |
प्राथमिक | 1.24 | 0.69 | 1.35 |
उच्च प्राथमिक | 2.98 | 2.61 | 3.31 |
माध्यमिक | 15.07 | 13.71 | 12.25 |
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