Maulana Azad National Fellowship: सरकार ने हाल ही में मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप को बंद करने का निर्णय लिया है. जिसका विरोध देश भर में देखने को मिल रहा है. 08 दिसंबर को अल्पसंख्यक मंत्री स्मृति ईरानी के एक ऐलान ने हजारों छात्रों के जीवन में खलबली मचा दी. सरकार ने घोषणा की है कि अल्पसंख्यक वर्ग के छात्रों को 2009 से मिल रही मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय फेलोशिप 2022- 23 से बंद की जाएगी. इससे अल्पसंख्यक समुदाय के छात्र परेशान हैं, उन्हें अपनी रिसर्च, फील्ड वर्क, पीएचडी पर संकट दिखाई दे रहा है.


केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री स्मृति ईरानी ने इस फेलोशिप को लेकर 8 दिसंबर को लोकसभा में एक जवाब दिया था. स्मृति ईरानी ने बताया था कि अल्पसंख्यक समुदायों के बच्चों को हायर एजुकेशन के लिए मिलने वाली मौलाना आजाद नेशनल फेलोशिप को सरकार ने 2022-23 से बंद करने का निर्णय लिया है. छात्रों का कहना है कि ये खबर बेहद डिस्टर्ब कर देने वाली है.


क्या है मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप
मौलाना आज़ाद नेशनल फेलोशिप 2009 में शुरू की गई थी, इसके माध्यम से 6 अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदायों जिनमें बौद्ध, ईसाई, जैन, मुस्लिम, पारसी और सिख के छात्र शामिल हैं. उन्हें एमफिल और पीएचडी करने के लिए सरकार की तरफ से पांच साल तक वित्तीय सहायता मिलती थी. मौलाना आज़ाद नेशनल फ़ेलोशिप में अल्पसंख्यक समुदाय के वे छात्र आवेदन कर सकते हैं जो नेट की परीक्षा में उतने नंबर नहीं ला पाते हैं, जिससे उन्हें जेआरएफ मिल पाए. इस फ़ेलोशिप के तहत प्रति महीना लगभग 30 हजार रुपये और दो साल के बाद सीनियर रिसर्च फेलो बनने पर लगभग 35 हजार रुपये छात्रों को दिए जाते थे. इसके अलावा उन्हें रहने के लिए भी लगभग 08 हजार रुपये मिलने का प्रावधान था.


फैसले पर सवाल?
केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा कि मौलाना आज़ाद नेशनल फ़ेलोशिप, हायर एजुकेशन में लागू दूसरी फेलोशिप योजनाओं से ओ​​वरलैप करती है. अल्पसंख्यक वर्ग के छात्र पहले से ही इस तरह की योजनाओं के तहत शामिल हैं. वहीं, योजना के ओवरलैप पर जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर विवेक कुमार ने सवाल उठाते हुए कहा कि इस फेलोशिप को लेने के लिए सरकार ने परिवार की एक निश्चित आय तय की है. ओवरलैप का कहीं प्रश्न ही नहीं उठता. अगर परिवार की आय तय सीमा से ज्यादा है तो कोई छात्र इसे नहीं ले सकता.


इसके अलावा जिसे जेआरएफ मिलता है उसे मौलाना आज़ाद नेशनल फ़ेलोशिप छोड़नी पड़ती है, क्योंकि दोनों फेलोशिप यूजीसी ही देती है. यदि मौलाना आज़ाद फेलोशिप मिल जाए तो छात्र के लिए जेआरएफ निकालना महत्वपूर्ण नहीं रहता, ये भी एक तरह का जेआरएफ है और छात्र अपनी पीएचडी शुरू कर देते हैं.


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