Motivational Story: कहते हैं, पढ़ाई और सपने पूरे करने की कोई उम्र नहीं होती. इच्छाशक्ति और लगन व मेहनत के साथ जब भी कोई तैयारी करें तो वह सपनों को पूरा कर सकता है. उड़ीसा के रहने वाले जय किशोर प्रधान की कहानी इस बात को चरितार्थ करती है. उम्र भर बैंक में नौकरी कर प्रधान डिप्टी मैनेजर के पद से रिटायर तो हुए लेकिन बचपन में डॉक्टर न बन पाने का मलाल उनके मन में रहा. लेकिन जब उन्हें मौका मिला और तकदीर ने साथ दिया तो उन्होंने उसका पूरा फायदा उठाते हुए मेहनत की और अब वह अपने सपने को पूरा करने के करीब पहुंच चुके हैं.





1974 में हो गए थे असफल

वीर सुरेंद्र साइन इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च में 2020 से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहे प्रधान ने पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच 1974 में मेडिकल प्रवेश परीक्षा में असफल रहने के बाद फिजिक्स विषय लेकर में बीएससी की और एक स्कूल मेंं टीचर की नौकरी करने लगे. इसके बाद उनका इंडियन बैंक में चयन हो गया. कुछ वक्त वहां रहने के बाद बाकी की नौकरी एसबीआई में की और साल 2016 में वहीं से डिप्टी मैनेजर के पद से रिटायर हुए.

 

सपने के आड़े आ रहे थे नियम

2016 में रिटायर्ड होने के बाद घर पर खाली बैठने की बजाय प्रधान ने डॉक्टर बनने के लिए जानकारी जुटानी शुरू की. डॉक्टर बनने की इच्छा में नियम आड़े आ रहे थे. लिहाजा उन्होंने अपने सपने को फिर से किनारे कर दिया.

 


 

सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने बदली तकदीर

2019 में सुप्रीम कोर्ट ने 25 साल से ऊपर की उम्र के लोगों को भी नीट की परीक्षा में शामिल होने की अनुमति दे दी. इसके बाद राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग अधिनियम 2019 लाया गया जो यह सुनिश्चित करता है कि नीट परीक्षा देने वाले उम्मीदवारों के लिए ऊपरी आयु की कोई सीमा नहीं है. इस अधिनियम ने जैसे प्रधान की तकदीर बदल दी. अपने शुरुआती दौर में डॉक्टर बनने का सपना अधूरा छोड़ चुके जय किशोर ने सपने को पूरा करने के लिए तैयारी शुरू की और पढ़ाई कर 2020 में परीक्षा पास कर 64 साल की उम्र में उड़ीसा सरकार द्वारा संचालित वीर सुरेंद्र साइन इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल साइंसेज एंड रिसर्च में एमबीबीएस की सीट पाने में सफल रहे.

 

ऑनलाइन कोचिंग की ली मदद

परिवार की जिम्मेदारी संभालते हुए प्रधान ने जब नीट परीक्षा देने का फैसला किया तो उसको लेकर पूरा खाका तैयार किया. कोचिंग से लेकर पढ़ाई और परिवार के बीच तालमेल बनाया. फिर ऑनलाइन कोचिंग इंस्टीट्यूट की गा​इडेंंस की मदद से करीब 46 साल बाद अपना सपना पूरा किया. वर्तमान में वह चौथे साल की पढ़ाई कर रहे हैं और अगले साल वह डॉक्टर बन जाएंगे.

 



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