उन्होंने कहा कि इस वैकल्पिक एकेडमिक कैलेंडर को बनाते समय आधुनिक तकनीकों और सोशल मीडिया को तरजीह दी गई है ताकि स्टूडेंट्स घर पर रुचिपूर्ण और आनंदपूर्वक अध्ययन कर सकें. डॉ निशंक ने कहा कि इस कैलेंडर के माध्यम से अध्यापक विभिन्न तकनीकों और सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म का उपयोग करके छात्र-छात्राओं को अभिभावकों की उपस्थिति में अध्यापन का कार्य कर सकेंगें. हो सकता है कि किसी के घर पर मोबाइल या इंटरनेट की सुविधा न हो और वे सोशल मीडिया का उपयोग न करते हों तो इन स्थितियों में अध्यापकों को कहा गया है कि वे एसएमएस के माध्यम से या फोन करके स्टूडेंट्स को गाइड करें. इंटरनेट की सुविधा होने पर अध्यापक स्टूडेंट्स, और अभिभावक तीनों एक दूसरे से व्हाट्सएप, फेसबुक, ट्वीटर, टेलीग्राम, गूगल मेल और गूगल हैंगऑउट द्वारा जुड़कर पढ़ाई कर सकते हैं.
डॉ निशंक ने आगे कहा कि इस कैलेंडर में कक्षा 9वीं से लेकर कक्षा 12वीं तक के सभी विषयों को रखा गया है. इसमें सभी बच्चों जिसमें दिव्यांग भी शामिल हैं को ध्यान में रखकर बनाया गया है. उन्होंने कहा कि इस कैलेंडर को साप्ताहिक आधार पर जारी किया जाएगा. इसमें विषयों को रुचिपूर्ण और चुनौती पूर्ण गतिविधियों के अनुसार शामिल किया गया है. इस कैलेंडर की एक बड़ी विशेषता यह है कि इसके माध्यम से अभिभावक और अध्यापक दोनों बच्चों की प्रगति पर नजर रख सकेंगें.
उन्होंने कहा कि इस कैलेंडर में अनुभव आधारित शिक्षा के लिए कला, शारीरिक शिक्षा और योग को भी शामिल किया गया है. इसमें बच्चों को तनाव मुक्त रहने और चिंता से दूर रखने के उपायों को शामिल किया गया है. इस कैलेंडर में चार भाषाओं – हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू और संस्कृत को शामिल किया गया है. इसमें ई-पाठशाला, एनआरओईआर और दीक्षा पोर्टल पर उपलब्ध सामग्री को भी शामिल किया गया है. इस वैकल्पिक कैलेंडर की एक बड़ी विशेषता यह है कि इसमें शामिल सभी गतिविधियाँ सुझाव के तौर पर हैं. यह किसी पर आदेशात्मक रूप से थोपी नहीं गई है. अध्यापक और अभिभावक बिना क्रम पर ध्यान दिए हुए वे बच्चों की बौधिक क्षमता और रुचियों के आधार किसी भी गतिविधि का चयन कर सकते हैं.
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