ओडिशा HC ने राज्य सरकार के कम स्ट्रेंथ वाले स्कूलों को बंद या मर्ज करने के आदेश पर लगाई रोक
ओडिशा हाईकोर्ट ने मास एजुकेशन डिपार्टमेंट के कम स्टूडेंट्स की संख्या वाले स्कूलों को अच्छी स्ट्रेंथ वाले स्कूलों में विलय करने के नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया. इसके साथ ही हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि पहले की तरह विलय हुए स्कूलों की स्थिति को बहाल करें और उक्त स्कूलों को सुचारू रूप से चलाने के लिए जरूरी इंफ्रॉस्ट्रक्चर प्रदान करें.
उड़ीसा उच्च न्यायालय ने मंगलवार को स्कूल और मास एजुकेशन डिपार्टमेंट के एक नोटिफिकेशन को रद्द कर दिया. इस नोटिफिकेशन में लगभग 8,000 एलिमेंटरी और प्राइमरी स्कूलों को स्टूडेंट्स की कम संख्या होने के कारण पास के ही कुछ अच्छी स्ट्रेंग्थ और इंफ्रॉस्ट्रक्चर वाले स्कूलों में मर्ज करने के लिए कहा गया था.
राज्य सरकार को विलय हुए स्कूलों को बहाल करने का निर्देश
इसी तरह की प्रार्थना वाली लगभग 170 रिट याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति डॉ. बीआर सारंगी ने 11 मार्च, 2020 के नोटिफिकेशन और उसके बाद के ऑफिस मेमोरेंडम और विभाग के कोरिगेंडम को रद्द कर दिया और राज्य सरकार को निर्देश दिया कि पहले की तरह विलय हुए स्कूलों की स्थिति को बहाल करें और उक्त स्कूलों को सुचारू रूप से चलाने के लिए जरूरी इंफ्रॉस्ट्रक्चर प्रदान करें.
7772 स्कूलों का विलय शुरू किया गया था
विभाग ने कम से कम 7772 स्कूलों का विलय शुरू किया था, जिनमें 1724 स्कूलों में 25 से कम छात्र और 6048 स्कूलों में 20 से कम छात्र थे. हालांकि, विपक्षी राजनीतिक दलों ने आरोप लगाया था कि राज्य सरकार की गरीब नामांकन की दलील पर 14,000 से अधिक स्कूलों को बंद करने और इनमें से कुछ स्कूलों को पास के कुछ स्कूलों में विलय करने की योजना है.
बता दें कि स्कूल और मास शिक्षा मंत्री समीर रंजन दाश ने पिछले साल राज्य विधानसभा को सूचित किया था कि स्कूलों के विलय से प्रभावित हुए प्रत्येक छात्र को शिक्षा का अधिकार अधिनियम के तहत 3,000 रुपये की एकमुश्त वित्तीय सहायता और अन्य 600 रुपये प्रति माह एस्कॉर्ट भत्ते के प्रावधान के अनुसार प्रदान किए जाएंगे.
अभिभावकों ने राज्य सरकार के आदेश उड़ीसा हाईकोर्ट में दी थी चुनौती
गौरतलब है कि सरकार स्कूलों को विलय करना चाह रही थी लेकिन पैरेंट्स एसोसिएशन के सदस्यों के साथ-साथ विपक्षी राजनीतिक दलों के मजबूत विरोध प्रदर्शनों में दावा किया गया कि स्कूलों को बंद करने और विलय से छात्रों को बहुत असुविधा होगी क्योंकि उन्हें नए स्कूलों तक पहुंचने के लिए लंबी दूरी की तय करनी होगी. इसके बाद कई अभिभावकों ने राज्य सरकार के आदेश को चुनौती देते हुए उड़ीसा उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था.
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