कहते हैं कि इंसान कुछ करने की ठान ले, तो उसे मंजिल तक पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता है. ऐसा ही कुछ एक महिला खिलाड़ी के साथ हुआ. उसके पिता रिक्शा चलाते थे, घर में खाने-पीने को लेकर भी समस्या रहती थी, लेकिन उसे तीरंदाजी का शौक था. पत्थर से पेड़ पर लटके आमों पर निशाना लगाया करती थी और मन में उम्मीद थी कि एक दिन देश के लिए ओलंपिक मेडल लाएगी. यह कहानी झारखंड के एक छोटे से गांव में जन्मी दीपिका कुमारी की है, जिनका ओलंपिक तक पहुंचने का सफर किसी सपने जैसा है. बांस के तीर और धनुष से खेलकर शुरू हुई उनकी यात्रा आज उन्हें विश्व की सबसे बेहतरीन तीरंदाजों में शुमार करती है. वह पेरिस ओलंपिक में भारत प्रतिनिधित्व करने के लिए गई हैं.


एक ऑटो-रिक्शा चालक के घर में जन्मी दीपिका के लिए तीरंदाजी के उपकरण जुटाना बेहद मुश्किल था. बावजूद इसके, उन्होंने अपने सपनों को कभी नहीं छोड़ा. बांस के बने उपकरणों से अभ्यास करके उन्होंने अपनी प्रतिभा को निखारा. दीपिका ने राष्ट्रमंडल खेलों और एशियाई खेलों में भारत के लिए कई पदक जीते. उन्होंने विश्व कप में भी कई बार भारत का प्रतिनिधित्व किया और कई पदक जीते. उनकी सफलता ने भारत में तीरंदाजी को एक नई पहचान दी.


दीपिका कुमारी अब तक तीन ओलंपिक खेल चुकी हैं. हालांकि, अभी तक उन्हें ओलंपिक पदक नहीं मिला है. भारत को ओलंपिक में पहला तीरंदाजी पदक दिलाने की जिम्मेदारी दीपिका के कंधों पर है. दीपिका कुमारी सिर्फ एक तीरंदाज नहीं हैं, बल्कि लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा हैं. उन्होंने साबित किया है कि कड़ी मेहनत और लगन से कोई भी सपना पूरा किया जा सकता है. चाहे आपके पास कितने भी संसाधन क्यों न हों, अगर आपका लक्ष्य स्पष्ट है तो आप सफल जरूर होंगे.


जीते कई पदक


टाटा तीरंदाजी अकादमी में दीपिका को साल 2006 में उन्हें पहली बार तीरंदाजी के लिए औपचारिक जरुरी उपकरण मिले थे. दीपिका कुमारी ने 2010 राष्ट्रमंडल खेलों और 2010 एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीते. 2011 में उन्होंने विश्व कप में चार रजत पदक जीते. 2012 में उन्होंने तुर्की में विश्व कप में स्वर्ण पदक जीता. वह 2012 लंदन ओलंपिक में टॉप तीरंदाज के रूप में भाग लेने वाली थीं. इसके बाद भी उन्होंने कई रिकॉर्ड की बराबरी की.


मिले हैं सम्मान


दीपिका कुमारी कहती हैं, अपने सपनों को कभी मत छोड़ो. कड़ी मेहनत करते रहो और सफलता जरूर मिलेगी. दीपिका कुमारी का सफर हमें याद दिलाता है कि अगर हम दृढ़ निश्चयी हों तो हम कोई भी मुश्किल काम कर सकते हैं. उन्हें साल 2012 में अर्जुन पुरस्कार और 2012 में पद्मश्री सम्मान मिला है.


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