अखबार की खबर पढ़कर देखा था बॉक्सर बनने का सपना, रिंग तक ऐसे पहुंची 1300 रुपये कमाने वाले की बेटी
एक गरीब परिवार में जन्मी लवलीना बोरगोहेन ने विश्व पटल पर भारत का नाम रोशन किया. बाधाओं को पार करते हुए उन्होंने कई पदक जीते और अब एक बार फिर ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व कर रही हैं.
Lovlina Borgohain Success Story: एक गरीब परिवार में पैदा हुईं, एक छोटे से कमरे में पूरा घर जैसे-तैसे गुजर बसर करता था. बचपन काफी परेशानियों के बीच बीता, परिवार के अगले दिन के खाने के लिए माता-पिता चिंतित रहते थे. मां को काफी बेहद चिंता रहती थी जो देखी नहीं जाती थी. जिसके चलते कम उम्र में ही कुछ करने का ठाना और मां के सपने को पूरा करने के लिए निकल पड़ीं. रास्ते में आई सभी दिक्कतों को पार करते हुए आज दुनिया भर में मशहूर मुक्केबाज और ओलंपिक पदक विजेता बनने का सफर तय किया और एक बार फिर पेरिस ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व कर रही हैं. आज हम आपको मशहूर बॉक्सर लवलीना बोरगोहेन की सफलता की कहानी बताएंगे.
लवलीना बोरगोहेन की कहानी एक ऐसी कहानी है जो साहस, दृढ़ संकल्प और मुश्किलों को पार करने की प्रेरणा से भरी हुई है. लवलीना बोरगोहेन का जन्म साल 1997 में असम में हुआ था. उनके पिता एक छोटे से व्यापारी थे, जब वह छोटी थीं तब एक छोटे से कमरे में पूरा परिवार गुजर करता था. घर में तीन बेटियां थीं, जिनके आगे के जीवन को लेकर माता-पिता को चिंताएं सताती रहती थीं. उनके पिता महीने के केवल 1300 रुपये ही कमा पाते थे. महज 15 साल की उम्र लवलीना बोरगोहेन गोलाघाट से गुवाहाटी आ गईं. ताकि अपनी मां के सपने को पूरा कर सके उन लोगों को चुप करा सके जो लड़कियों को 'कमतर' समझते थे.
अखबार से शुरू हुआ सफर
लवलीना की मुक्केबाजी से मुलाकात कुछ हद तक संयोग से हुई. रिपोर्ट्स बताती हैं कि एक बार लवलीना के पिता मिठाई लाए थे, पिता जिस अखबार में मिठाई लाए थे उसे लवलीना ने बाद में देखा तो उसमें मशहूर मुक्केबाज मोहम्मद अली का जिक्र था. इसके बाद उनके मन में मोहम्मद अली के बारे में पढ़ने ख्याल आया. जिसके बाद लवलीना के मन में बॉक्सर बनने की ख्वाहिश आ गई.
लगा दी जी-जान
किक-बॉक्सिंग करने वालीं लवलीना का ट्रायल प्राइमरी स्कूल में स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के लिए हुआ जहां कोच पदुम बोरो ने लवलीना में क्षमता देखी और उन्हें इस खेल में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया. लवलीना ने जल्दी ही मुक्केबाजी के लिए जी-जान लगा दी. उन्होंने कड़ी मेहनत की अक्सर कठिन परिस्थितियों में स्थानीय और क्षेत्रीय टूर्नामेंट जीतना शुरू कर दिया.
ओलंपिक के लिए क्वालीफाई
फिर एक सुनहरा वर्ष आया साल 2012 में लवलीना ने नेशनल जूनियर बॉक्सिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता. इस जीत ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली और उन्हें भारतीय राष्ट्रीय टीम में जगह. जहां से उन्होंने रुकने का नाम नहीं लिया साल 2017 और 2018 में सीनियर नेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीते. उन्होंने 2019 में एशियाई मुक्केबाजी चैंपियनशिप में कांस्य पदक भी अपने नाम किया. लवलीना का सपना ओलंपिक में शामिल होने का था, जो साल 2020 में पूरा भी हुआ. उन्होंने वेल्टरवेट वर्ग में 2020 टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया.
एक जुनून
टोक्यो ओलंपिक लवलीना के लिए एक सपने की तरह था. उन्होंने सेमीफाइनल तक अपनी जगह बनाई, जहां उन्हें तुर्की की एक मुक्केबाज से हार का सामना करना पड़ा. हालांकि, उन्होंने यूक्रेन की एक मुक्केबाज को हराकर कांस्य पदक जीता, जिससे वह असम की पहली महिला मुक्केबाज बन गईं, जिन्होंने ओलंपिक पदक जीता. अब वह पेरिस ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व कर रही हैं.
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