पिता एक कॉफी प्लांटर थे और मां घर संभालती थीं. घर का माहौल बेहद साधारण था, लेकिन एक लड़के की आंखों में सपना जगमगा रहा था, वह कुछ बड़ा करना चाहता था. मात्र 11 साल की उम्र में ही पिता ने टेनिस खेलने के लिए प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया. पिता को पूरा विश्वास था कि बेटा एक दिन परिवार का नाम रोशन करेगा और बेटे ने भी अपने पिता का सपना पूरा किया. अपने करियर में कई उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ा. हम बात कर रहे हैं रोहन बोपन्ना की. जो सिर्फ एक टेनिस खिलाड़ी नहीं हैं, बल्कि वे लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा हैं. आज वह पेरिस ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, पूरा देश उन पर गर्व कर रहा है.
रोहन बोपन्ना को कभी जीत मिली, कभी हार. लेकिन कभी हार नहीं मानी और देश का नाम विश्व स्तर पर ऊंचा करने के लिए कड़ी मेहनत करते रहे. आज वह भारत का गौरव हैं.उन्होंने साबित कर दिया है कि लगन और मेहनत से असंभव कुछ भी नहीं है. रोहन का जन्म कर्नाटक के कुर्ग जिले में मार्च 1980 में हुआ था. बचपन से ही टेनिस के प्रति गहरी रुचि थी. अपने खेल को निखारने के लिए वे संयुक्त राज्य अमेरिका गए, जहां उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई की और टेनिस की दुनिया में अपनी पहचान बनाई.
ग्रैंड स्लैम जीतने वाले सबसे उम्रदराज खिलाड़ी
आज भले ही बाल और दाढ़ी पर सफेद बाल आ गए हों. लेकिन 44 साल की उम्र में भी रोहन के रैकेट की धार कम नहीं हुई है, वह खेल के प्रति समर्पित हैं. आज भी विश्व भर में उनके जबरदस्त सर्व, नेट पर तेज-तर्रार फ्लेक्स और सोचे-समझे फोरहैंड रिटर्न चर्चा में रहते हैं. बोपन्ना के नाम टेनिस इतिहास में ग्रैंड स्लैम जीतने वाले सबसे उम्रदराज खिलाड़ी का रिकॉर्ड भी है.
अर्जुन अवार्ड से नवाजा गया
रोहन बोपन्ना विशेषकर युगल टेनिस में अपने शानदार प्रदर्शन के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने कई ग्रैंड स्लैम खिताब जीते हैं, जिनमें से 2017 में फ्रेंच ओपन में गैब्रिएला डाब्रोवस्की के साथ मिश्रित युगल का खिताब जीतना शामिल है. उन्हें अर्जुन पुरस्कार से भी सम्मानित किया. उन्होंने वर्ष 2002 में भारतीय डेविस कप टीम का अहम सदस्य रहे हैं. इसके अलावा रोहन ने सानिया मिर्जा के साथ मिलकर 2006 में एशियन होपमैन कप जीता था, जो 2007 होपमैन कप के लिए क्वालीफाइंग टूर्नामेंट भी था.
विवादों में भी रहे
साल 2012 और 2016 के ओलंपिक में वह जोड़ी को लेकर विवादों में भी रहे. लंदन ओलंपिक में वह भूपति के साथ दूसरे दौर में हारे, जबकि रियो ओलंपिक में सानिया के साथ सेमीफाइनल में हारकर चौथे स्थान पर रहे. इस बार बोपन्ना का साथ एन श्रीराम बालाजी निभा रहे हैं.
युवाओं को कर रहे प्रेरित
ग्रैंड स्लैम विजेता होने के साथ ही रोहन बोपन्ना देश में टेनिस को बढ़ावा देने का काम करते हैं. वह युवा प्रतिभाओं को निखारने के लिए भी तत्पर हैं. उन्होंने एक टेनिस अकादमी की स्थापना भी की. जहां युवा खिलाड़ियों को टेनिस में बेहरतीन प्लेयर बनने के लिए ट्रेन किया जाता है. अब रोहन भारत का पेरिस ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं, जिस पर पूरे देश को उन पर बेहद गर्व है. हालांकि ये उनका पहला ओलंपिक नहीं है. इससे पहले भी वह दो बार ओलंपिक में भारत की तरफ से खेल चुके हैं.
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